Skip to main content

Bundi's Farmers Agitation बूंदी का किसान आंदोलन -








बूंदी का किसान आंदोलन-
राजस्थान में भूमि बंदोबस्त व्यवस्था के बावजूद भी गावों में धीरे-धीरे महाजनों का वर्चस्व बढ़ने लगे 'साद' प्रथा के अंतर्गत प्रत्येक क्षेत्र में महाजन से लगान की अदायगी का आश्वासन लिया जाने लगा इस व्यवस्था से किसान अधिकाधिक रूप से महाजनों पर आश्रित होने लगे तथा उनके चंगुल में फंसने लगे 19 वीं सदी के अंत में व 20 वीं सदी के शुरू में जागीरदारों द्वारा किसानों पर नए-नए कर लगाये जाने लगे और उनसे बड़ी धनराशि एकत्रित की जाने लगी। जागीरदारी व्यवस्था शोषणात्मक हो गई। किसानों से अनेक करों के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के लाग-बाग लेने की प्रथा भी प्रारंभ हो गई। ये लागें दो प्रकार की थी-
1. स्थाई लाग
2. अस्थाई लाग (इन्हें कभी-कभी लिया जाता था।)
इस कारण से जागीर क्षेत्र में किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई जिसके कारण किसानों में रोष उत्पन्न हुआ तथा वे आन्दोलन करने को उतारू हो गए।
   बिजोलिया, बेगूं और अन्य क्षेत्र के किसानों के समान ही बूंदी राज्य के किसानों को भी अनेक प्रकार की लागतों (लगभग 25%), बेगार एवं ऊँची दरों पर लगान की रकम देनी पड़ रही थी। बूंदी राज्य में वसूले जा रहे कई करों के अलावा 1 रुपये पर 1 आने की दर से स्थाई रूप से युद्धकोष के लिए धनराशि ली जाने लगी। किसानों के लिए यह अतिरिक्त भर असहनीय था। किसान राजकीय अत्याचारों से परेशान होने लगे। मेवाड़ राज्य के बिजोलिया में हुए किसान आन्दोलन की कहानियां पूरे राजस्थान में व्याप्त हुई। अप्रेल 1922 में बिजोलिया की सीमा से जुड़े बूंदी राज्य के 'बराड़' क्षेत्र के त्रस्त किसानों ने आन्दोलन प्रारंभ कर दिया। इसीलिए इस आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहते हैं।
किसानों को 'राजस्थान सेवा संघ' का मार्गदर्शन प्राप्त था। किसानों ने राज्य की सरकार को अनियमित लाग, बेगार व भेंट आदि देना बंद कर दिया। आन्दोलन का नेतृत्व 'राजस्थान सेवा संघ' के कर्मठ कार्यकर्ता 'नयनू राम शर्मा' कर रहे थे। इनके नेतृत्व में डाबी नामक स्थान पर किसानों का एक सम्मेलन बुलाया। राज्य की ओर से बातचीत द्वारा किसानों की समस्याओं एवं शिकायतों को दूर करने कई प्रयास हुए, किन्तु वे विफल हो गए। तब राज्य की सरकार ने दमनात्मक नीति अपनाना शुरू किया और निहत्थे किसानों पर निर्ममतापूर्वक लाठियां व गोलियां बरसाई गई। सत्याग्रह करने वाली स्त्रियों पर घुड़सवारों द्वारा घोड़े दौड़कर एवं भाले चलाकर अमानवीय अत्याचार किया गया। पुलिस द्वारा किसानों पर की गई गोलीबारी में झण्डा गीत गाते हुए 'नानकजी भील' शहीद हो गए।
आन्दोलनकारियों के नेता नयनू राम शर्मा, नारायण लाल, भंवरलाल आदि एवं राजस्थान सेवा संघ के अनेक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर मुकदमे चलाए गए। नयनू राम शर्मा को राजद्रोह के अपराध में 4 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई।
यद्यपि यह आन्दोलन असफल रहा किन्तु इस आन्दोलन से यहाँ के किसानों को कुछ रियायतें अवश्य प्राप्त हुई और भ्रष्ट अधिकारियों को दण्डित किया गया तथा राज्य के प्रशासन में सुधारों का सूत्रपात हुआ।
बूंदी का किसान आन्दोलन राज्य प्रशासन के विरुद्ध था, जबकि मेवाड़ राज्य के बिजोलिया के आन्दोलन में किसानों ने अधिकांशतः जागीर-व्यवस्था का विरोध किया था। बूंदी के किसान आन्दोलन की विशेषता यह थी कि इसमें बड़ी संख्या में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।                                                             

Comments

  1. इसमे झण्डा गीत गाते हुए नानकजी भील के साथ देवीलाल गुर्जर भी शाहीद हुआ था

    ReplyDelete
    Replies
    1. जानकारी बढ़ाने के लिए आभार...

      Delete
  2. Rama Bai Ka samand kis and plan se

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिजोलिया आन्दोलन से .

      Delete
  3. daabi (bundi) 1926 me suruaat hua tha kya aandolan

    ReplyDelete
  4. बड़े भाई मेरा मानना है कि आप अपने पुराने blog और नया बैटर भी जोड़ते रहे क्योंकि अब इसमें लिखा है कि बूंदी आंदोलन में महिलाओं की भूमिका थी तो वह महिलाओं की क्या भूमिका थी उनके क्या नाम थे वह भी आपको इसमें लिखोगे तो यह और अच्छा लगेगा

    ReplyDelete

Post a Comment

Your comments are precious. Please give your suggestion for betterment of this blog. Thank you so much for visiting here and express feelings
आपकी टिप्पणियाँ बहुमूल्य हैं, कृपया अपने सुझाव अवश्य दें.. यहां पधारने तथा भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार

Popular posts from this blog

Baba Mohan Ram Mandir and Kali Kholi Dham Holi Mela

Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...