डीग के चित्ताकर्षक जलमहल-
भरतपुर जिले में स्थितप्राचीन दीर्घपुरा, डीग (अक्षांश 27° 25', रेखांश 77° 15') को 18वीं-19वीं शताब्दी ई. के दौरान जाट शासकों का मजबूत गढ़ बना था।
राचीन पवित्र ब्रज-भूमि की क्षेत्रीय सीमाओं में आने वाला डीग दिल्ली से 153 कि.मी. तथा आगरा से 98 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। भरतपुर के महाराजा बदन सिंह (1722-56 ई.) ने राज्य सिंहासन प्राप्त करने के पश्चात् समुदाय प्रमुखों को इकट्ठा किया था और इस प्रकार वे भरतपुर में जाट घराने का प्रसिद्ध संस्थापक बने। डीग का नगरीकरण शुरू करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। उन्होंने ही इस स्थान को अपनी नवस्थापित जाट रियासत के मुख्यालय (राजधानी) के रूप में चुना था।
डीग के
भवनों एवं उद्यानों के विन्यास से यह स्पष्ट हो जाता है कि भरतपुर के शासक कुशल शासक ही नहीं थे, वरन अच्छे कला-प्रेमी एवं कला
संरक्षक थे। उनके समय में हुए निर्माण वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं। बदन
सिंह को सौन्दर्य कला, स्थापत्य कला और वास्तु का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने डीग के किले में सुन्दर भवन बनाए, जिनको पुराना महल नाम से
जाना जाता है। 18 वीं सदी में जबकि मुग़ल शैली या मिश्रित शैली में काम
हुआ, तब हिन्दू शैली का स्थान बनाये रखने का सार्थक प्रयास बदन सिंह एवं
सूरजमल ने किया। महाराजा बदन सिंह के पुत्र, महाराजा सूरजमल ने 1730 ई. में यहाँ बहुत ऊंची दीवारों तथा बुर्जों वाला मजबूत महल बनवाया था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार लगभग इसी काल में बदन सिंह के भाई रूप सिंह ने यहाँ रूप सागर नामक एक विशाल आकर्षक तालाब बनवाया। इस नगर की शोभा वृद्धि करने वाला सुन्दर उद्यान युक्त महल, सूरजमल की सर्वोत्तम कलात्मक उपलब्धियों में से एक है तथा यह आज भी जाट वंश के इस नायक के प्रसिद्ध स्मारक के रूप में है। महाराजा सूरजमल की मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र जवाहर सिंह (1764-68 ई.) ने यहाँ सूरज भवन आदि कुछ अन्य महल भी बनवाए। उसने उद्यानों एवं फव्वारों को भी सज्जित किया।
डीग की हवेलियों को भवन कहा जाता है जो यहाँ की वास्तुकला का प्रतिनिधित्व मुख्य रूप से करती है। इन भवनों में मुख्य रूप से गोपाल भवन, सूरज भवन, किशन भवन, नंद भवन, केशव भवन, हरदेव भवन शामिल हैं। उत्कृष्ट वास्तुकला के रूप में उत्कृष्ट परिमाप, संतुलित रूपरेखा, लम्बे व चौड़े हॉल, आकर्षक व तर्कसंगत सुव्यवस्थित चित्ताकर्षक मेहराब, मनमोहक हरियाली व जलाशय तथा फव्वारों सहित नहरें इन महलों की विशेषताएं हैं जो दर्शकों को मनभावन लगती है। डीग के उद्यानों का अभिविन्यास औपचारिक रूप से मुगल चारबाग पद्धति पर किया गया है तथा इसके बगल में दो जलाशय- रूप सागर तथा गोपाल सागर हैं।
यहाँ की वास्तुकला प्रारम्भिक रूप से ट्राबीटे क्रम में है किन्तु कुछ जगहों पर चापाकार प्रणाली का भी प्रयोग किया गया है। अधिकांश तोरण पथ सजावटी स्वरूप के हैं क्योंकि प्रत्येक मेहराब, चाप-स्कंध आकार के शिला फलक को जोड़कर बनाया गया है जो खम्भों से बाहर निकले हुए हैं। अलंकृत खम्भों पर टिकी हुई मेहराबें, बहुस्तंभी मंडप, चपटी छत वाली वेदिकाएं, छज्जे तथा बंगाल छतों वाले मंडप, दो-दो छज्जे, मध्यम संरचनात्मक ऊंचाइयाँ तथा खुला आंतरिक विन्यास इस प्रणाली की सामान्य विशेषताएं हैं।
ऐतिहासिक रूप से डीग राजाराम (1686-88), भज्जा सिंह (1688-98) तथा चूडामन (1695-1721) के नेतृत्व में जाट किसानों के उत्थान से जुड़ा है। चूडामन की मृत्यु के पश्चात् बदन सिंह (1722-56 ई.) ने कई जिलों पर अपना अधिकार जमाया। इसी कारण उन्हें भरतपुर में जाट शासन का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। डीग को सुन्दरतम भवनों, महलों तथा उद्यानों वाले एक मनभावन शहर में परिवर्तित करने का श्रेय बदन सिंह को ही जाता है। बदन सिंह का पुत्र तथा उत्तराधिकारी सूरजमल (1756-63) भरतपुर का एक महानतम शासक था तथा इनके शासनकाल में इस वंश की शक्तियां अपने चरम पर पहुंची थी।
डीग महल के महत्वपूर्ण स्मारक :-
सिंह पोल
यह महल परिसर का प्रमुख प्रवेश द्वार है, जिसका सिंह पोल नाम इसके तोरणद्वार के सामने बनी दो शेर की मूर्तियों के कारण पड़ा है। यह एक अपूर्ण संरचना है जिसका केन्द्रीय प्रक्षेप उत्तर में है। वास्तुकलात्मक रूप से यह कुछ बाद की अवधि का कार्य प्रतीत होता है।
गोपाल भवन
महाराजा सूरजमल ने 1756-63 ईसवी के दौरान किशन भवन और गोपाल भवन का निर्माण करवाया था। अन्य सभी भवनों में गोपाल भवन सबसे वृहद् तथा अत्यधिक दर्शनीय है। इसके पीछे स्थित सरोवर के पानी की परत पर पड़ने वाला इसका प्रतिबिम्ब, इसके परिवेश पर अनुपम छटा बिखेरता है। भवन में एक केन्द्रीय हॉल है जिसके दोनों ओर पार्श्व में दो कम ऊंचाई की मंजिलों वाला स्कन्ध है। इसके पृष्ठभाग में दो आयताकार भूमिगत मंजिलों का निर्माण ग्रीष्म सैरगाह के रूप में किया गया है। केन्द्रीय प्रक्षेप राजसी मेहराबों तथा शानदार स्तंभों से सुसज्जित है। उत्तरी स्कंध में एक कक्ष में एक काले संगमरमर का सिंहासन चबूतरा है जिसे युद्ध से लूटा गया माना जाता है तथा जो जवाहर सिंह द्वारा दिल्ली के शाही महलों से लाया गया था।
गोपाल भवन के उत्तरी तथा दक्षिणी ओर दो लघु मंडप हैं जिन्हें क्रमश: सावन और भादों भवन के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक मंडप की दो मंजिला संरचना है जिसमें सामने से केवल ऊपरी मंजिल ही दिखाई देती है। इसकी पालकीनुमा छत है जिसके शिखर पर पंक्ति में शंकु लगे हैं।
डीग संग्रहालय में डीग के महाराजा और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं, फर्नीचर इत्यादि का प्रदर्शन किया गया है। वर्तमान में यहाँ 547 दस्तावेजी वस्तुएं हैं। इनमें से सर्वोत्तम वस्तुएं गोपाल भवन एवं किशन भवन में प्रदर्शित हैं।डीग महल परिसर के अन्दर निर्मित सभी इमारतों में सबसे बड़ी और सर्वाधिक प्रभावशाली इमारत गोपाल भवन में डीग के संग्रहालय का प्रमुख भाग भी स्थित है। इसकी दीर्घाओं में प्रदर्शित वस्तुओं में मुख्य कक्ष, मान सिंह कक्ष, अंग्रेजी और भारतीय भोजन कक्ष, महाराजा का कक्ष, महाराजा का शयन कक्ष, ए डी सी कक्ष, बिलियर्ड कक्ष तथा गोपाल भवन में रानी का तथा जनाना निवास स्थान सम्मिलित हैं। यहाँ आगन्तुकों को सर्वप्रथम भगवान वेणुगोपाल की चन्दन की लकड़ी की एक प्रभावशाली प्रतिमा दिखाई पड़ती है।
सूरज भवन
महल परिसर के भीतर यह अत्यधिक विस्तृत तथा भव्य संगमरमर का भवन है। इसका निर्माण सूरजमल द्वारा करवाया गया था। यह एक मंजिला चपटी छत वाला भवन है। इस भवन के चारों ओर एक बरामदा है जिसमें प्रवेश के लिए पांच तोरण द्वार हैं तथा किनारों के साथ कक्ष हैं। मूल रूप से यह भवन पाण्डु रंग के बलुआ पत्थर से बनवाया गया था जिसमें बाद में सफेद संगमरमर लगाया गया। केन्द्रीय कक्ष के डाडो के किनारे उत्कृष्ट पीट्रा-ड्यूरा कार्य से सुसज्जित हैं।
किशन भवन
किशन भवन, परिसर के दक्षिणी ओर स्थित है। इस भवन का सुसज्जित तथा बड़ा अग्रभाग पांच बड़े केन्द्रीय मेहराबों तथा एक विशाल फव्वारे जो इसकी छत पर टैंक में पानी डालता है, द्वारा विभाजित है। मध्य तथा सामने के मेहराबों के चाप-स्कंध पेचीदा नक्काशी के बेलबूटों से सुसज्जित हैं। मुख्य कक्ष की पिछली दीवार में एक मंडप है जिसका अग्रभाग नक्काशीदार है तथा कृत्रिम रूप से उत्कीर्णित छत है जो एक पर्ण कुटी का प्रतिनिधित्व करती है।
हरदेव भवन
हरदेव भवन, सूरज भवन के पीछे स्थित है जिसके सामने एक विशाल बाग है जो चार बाग शैली में तैयार किया गया है। इस हवेली में बाद में सूरजमल के समय के दौरान कुछ परिवर्तन किए गए। दक्षिण में बना भवन दो मंजिला है। भूतल में एक प्रक्षेपित केन्द्रीय हॉल है जिसके सामने मेहराबें हैं जो दोहरे स्तम्भों की पंक्ति से निकल रही हैं। पीछे का भाग एक छतरी द्वारा सुसज्जित है जिसमें एक पालकीनुमा छत है। ऊपरी मंजिल के पृष्ठ भाग में तिरछे कट से ढकी एक संकरी दीर्घा है।
केशव भवन
आमतौर पर बारादरी के रूप में प्रसिद्ध केशव भवन, वर्गाकार एक मंजिला खुला मंडप है जो रूप सागर के साथ स्थित है। केंद्र में, यह भवन सभी तरफ जाने वाले और एक आंतरिक वर्ग बनाने वाले तोरणपथ द्वारा विविधतापूर्ण है। मूल रूप में इस भवन में मानसून के प्रभावों को उत्पन्न करने के उद्देश्य से एक उन्नत युक्ति बनाई गई थी। छत में पत्थर की गेंदें थी, गर्जन उत्पन्न करने के लिए जिनमें पाइप से बहते पानी से टकराहट पैदा की जा सकती थी तथा पानी टोंटियों के माध्यम से चापों के ऊपर छोड़ा जाता था ताकि खुले हाल के चारों ओर वह बारिश की तरह गिरे।
नंद भवन
नंद भवन, केन्द्रीय बगीचे के उत्तर की ओर स्थित है। यह आयताकार खुला हॉल है जो चबूतरे पर बनाया गया है तथा सात मुखी बड़े तोरण पथों द्वारा घिरा है। हॉल के केन्द्रीय भाग की छत लकड़ी से बनी हुई है। अन्य भवनों की भांति इसके सामने भी एक जलाशय है तथा इसका बाहरी भाग सुसज्जित है।
पुराना महल
बदन सिंह द्वारा निर्मित पुराने महल की निर्माण योजना एक खुले आयताकार रूप में है जिसके भीतरी भाग में दो अलग-अलग सदन हैं। यह विशिष्ट महल की परम्परा को आगे बढ़ाता है। इसका बाह्य भाग आकर्षक है। इसके मेहराब खुरदरे और नुकीले, दोनों प्रकार के हैं। राजसी निवासों का भूमि-विन्यास केन्द्रीय बगीचे के साथ-साथ किया गया है तथा इसके पार्श्व में पूर्व में रूप सागर तथा पश्चिम में गोपाल सागर नामक दो जलाशय हैं।
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