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राजस्थान की मालव गणजाति का ऐतिहासिक विवरण -





राजस्थान की मालव गणजाति का ऐतिहासिक विवरण -

नान्दसा यूप



मालव जाति ने प्राचीन भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस जाति का मूल निवास स्थान पंजाब था, वहाँ से इसका प्रसार उत्तरी भारत, राजस्थान, मध्य भारत, लाट देश, वर्तमान में भड़ौच, कच्छ, बड़नगर तथा अहमदाबाद में हुआ और अंत में मालवा में इस जाति ने अपने राज्य की स्थापना की। मालवों का सर्वप्रथम उल्लेख पाणिनि की अष्टाध्यायी में मिलता है। मालवों ने अपने गणस्वरुप को 600 ई.पू. से 400 ई. तक बनाए रखा। समुद्रगुप्त द्वारा पराजित मालवों ने अब गणशासन पद्दति को त्याग कर एकतंत्र को स्वीकार कर लिया। उन्होंने दशपुर- मध्यमिका (चितौड़) क्षेत्र में औलिकर वंश के नाम से शासन किया। पाणिनि के अनुसार मालव और क्षुद्रक वाहिक देश के दो प्रसिद्ध गणराज्य थे। दोनों की राजनीतिक सत्ता और पृथक भौगोलिक स्थिति थी। युद्ध के समय ये दोनों गण मिलकर साथ लड़ते थे। इस संयुक्त सेना की संज्ञा 'क्षौद्रक-मालवी' थी । सिकंदर के आक्रमण के समय मालव-क्षुद्रक गणों की सेना को साथ-साथ लडना था परन्तु सेनापति के चुनाव को लेकर उनमें मतभेद उत्पन्न हो गया। डायोडोरेस के अनुसार उन्होंने शत्रु का अलग-अलग मुकाबला किया। पाणिनि ने दोनों जातियों को "आयधुजीवी संघ" कहकर पुकारा है। उन दिनों वे समृद्ध दशा में थे भण्डारकर के अनुसार यूनानी लेखकों के द्वारा वर्णित "ओक्सिद्रकाई" क्षुद्रक ही थे। पतंजलि के महाभाष्य तथा जैन ग्रन्थ भगवतीसूत्र में मालवों का उल्लेख मिलता है। सिकंदर के आक्रमण के पूर्वी पंजाब में स्थित थे। स्मिथ के अनुसार मालव झेलम और चिनाब के संगम के निचले भाग में निवास करते थे। मैक्रिन्डल का मत है कि चिनाब और रावी के मध्य का मैदानी भू-भाग जो सिन्धु और चिनाब के संगम तक फैला हुआ था, मालवों के अधीन था। हेमचन्द्र रायचौधरी मालवों को निचली रावी घाटी में नदी के दोनों किनारों पर अवस्थित मानते हैं। एरियन के अनुसार मालव क्षुद्रकों के साथ सिकंदर के विरुद्ध संघ निर्मित करने को सहमत हो गए थे परन्तु शत्रु का आक्रमण अकस्मात हो जाने के कारण दोनों गणों को शत्रु के विरुद्ध कार्यवाही करने का अवसर नहीं मिला । इस विस्मयकारी आक्रमण से मालव पराजित हुए। मालवों ने अपने किलानुमा नगरी से अनवरत संघर्ष किया, परन्तु सदैव पराजित हुए। मालवों ने समर्पण करने की अपेक्षा नगरों को त्याग कर वनों और रेतीले क्षेत्र में निवास करना उचित समझा। मैक्रिन्डल का मत है कि मालवों के आक्रमण में स्वयं सिकंदर भी घायल हो गया था। तब उसने उनकी स्त्रियों और बालक-बालिकाओं का संहार करने का आदेश तक दे दिया था। लेकिन मालव निराश नही हुए। एरियन की मान्यता है कि सिकंदर ने मालवों को बुलाकर उनसे संधिवार्ता की थी जिसमें वे सफल हुए। मालवों तथा क्षुद्रकों की संयुक्त सेना में 90,000 या 80,000 पदाति, 10,000 घुड़सवार, 900 या 700 रथ थे। कर्टियस के अनुसार मालवों ने सिकंदर को कुछ बहुमूल्य वस्तुएँ तथा घोडे और रथ भेंट किए थे। संस्कृत साहित्य में मालवों के शारीरिक गठन का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वे असाधारण कद काठी के थे। इनकी लंबाई 104 अंगुल अथवा 6 फीट 4 इंच के लगभग होती थी।


कौटिल्य ने गणों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाएं रखने की सलाह अर्थशास्त्र में दी है। इससे प्रतीत होता है कि मौर्यकाल मे भी गणजातियों ने अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी थी। यद्यपि कौटिल्य की सूची में मुद्रक, कुकुर, कुरु, पांचाल आदि पंजाब या मध्यप्रदेश की गणजातियों का उल्लेख मिलता है, मालवों का नहीं। इसलिए इस बात की संभावना है कि मौर्यकाल या शुंगकाल में मालवों ने अपना मूल निवास स्थान छोड दिया और राजपूताना की ओर पलायन कर गए। इस बात की पूरी संभावना है कि पलायन काल में मालव और क्षुद्रकों में समागम हो गया इसलिए बाद में क्षुद्रकों का उल्लेख नहीं मिलता है। जायसवाल का मत है कि मालवों ने भटिंडा के मार्ग से राजपूताना में प्रवेश किया। इसकी पुष्टि करते हुए उन्होंने लिखा है कि वर्तमान में भी मालवी बोली फिरोजपुर से भटिंडा तक बोली जाती है । प्रारंभ में मालवों के पंजाब तथा राजपूताना में निवास करने की जानकारी महाभारत में भी उपलब्ध है । एरियन ने लिखा है कि अर्कीसनेज (चेनाब) मल्लोई अर्थात मालवों के अधीन क्षेत्र में सिन्धु में जाकर मिलती है। इस प्रकार मल्ल (मालव) जाति चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक के राज्यकाल तक तो पंजाब में रही। मौर्य साम्राज्य के निर्बल होने तथा उस पर इंडो-ग्रीक आक्रमण होने पर वह पंजाब छोड़कर राजस्थान में आ गई। उपलब्ध प्रमाण के अनुसार मालव सर्वप्रथम पूर्वी-राजस्थान मे आकर बसे थे। विभिन्न साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि यह स्थान टौंक जिले का नगर या कर्कोट नगर नामक स्थान था जो आधुनिक राजस्थान के निर्माण से पूर्व उनियारा ठिकाने के अंतर्गत आता था।
 इस स्थल की खोज 1871-72 ई. में सर्वप्रथम कार्लाइल ने की थी। उन्हें यहाँ से 6000 ताम्र मुद्राएँ प्राप्त हुई थी। उनमें से 110 मुद्राएँ इन्डियन म्यूजियम कलकत्ता में संगृहीत की गई थीं। उन मुद्राओं का अध्ययन बिन्सेंट स्मिथ ने किया था। डॉ. स्मिथ का विचार था कि इन सिक्कों में से 35 सिक्के ऐसे थे जो बाहर से लाएं गए और शेष 75 सिक्के नगर में ही ढाले गए थे।

 

कार्लाइल ने इन सिक्कों का अध्ययन करके 40 मुख्य नामों की पहचान की थी उनमें से 20 तो मालवगण प्रमुखों के नाम हैं। इन मुद्राओं पर ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया गया था और उनका निर्माण काल मुद्राशास्त्रियों ने द्वितीय शताब्दी ई.पू. से चतुर्थ ई. के मध्य माना है। इन मुद्राओं की लिखावट में कम अक्षरों का प्रयोग किया गया है। इनका भार तथा आकार भी न्यूनतम है। गण प्रमुखों का नाम लिखने में भी लिपिक्रम एक समान नहीं रखा गया है। कुछ सिक्कों पर ब्राह्मी वर्ण इस प्रकार लिखे गए है कि उनको बाँये से दाएँ पढ़ना पड़ता है।


मालव आर्थिक दृष्टि से समृद्धृ थे। कर्कट नगर से मुद्राओं के अलावा मंदिर, बाँध, तालाब तथा माला की मणियाँ उत्खनन में प्राप्त हुई हैं। जयपुर नगर से 56 मील की दूरी पर स्थित रेढ़ से भी मालवों के संबंध में जानकारी मिलती है। रेढ़ तीसरी शताब्दी ई.पू. से द्वितीय शताब्दी ई. तक आबाद रहा था। उस समय यहाँ मालव निवास कर रहे थे। यहाँ से मालवों की मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। रैढ़ से 2 खाई से एक लेड सील प्राप्त हुई थी जो मालवगण से संबंधित है। उस पर ब्राह्मी में लिखा हुआ है। लेड सील पर (मा.) ल-व-ज-न-प-द उत्कीर्ण है, जिसे द्वितीय शताब्दी ई.पू. का माना जाता है। यह सील राज्य के अधिकारी काम में लेते थे। रेढ़ से मालवगण के 300 सिक्के प्राप्त हो चुके हैं।


मालव सिक्कों की विशेषताएँ निम्न हैं -

  • मालव सिक्के गोलाकार थे।

  • इन पर मालव नाम अथवा मालवानाम् जय लिखा हुआ था।

  • कुछ मुद्राओं पर लेख मुद्राओं के पार्श्व भाग पर लिखा है।



  • सिक्कों पर उज्जैन चिहन, सांप, लहरदार नदी, नंदीपाद, त्रिकोण, परशुमाला, वृक्ष, कूबड वाला बैल भी उत्कीर्ण है।

  • स्मिथ ने मालव सिक्कों का न्यूनतम भार 7 ग्रेन तथा व्यास 2 इंच बताया है जबकि रेढ़ के सिक्कों का न्यूनतम भार 2.41 ग्रेन तथा अधिकतम भार 43.84 ग्रेन है। उनका आकार 0.3 इंच से 0.6 इंच के मध्य है।


मलावों का क्षहरात शकों से संघर्ष का उल्लेख नासिक गुहालेख में मिलता है, जो द्वितीय शती ई. के प्रारंभ का माना जाता है । इस अभिलेख में ऋषमदत्त द्वारा उत्तम भद्रों की सहायता हेतु आना तथा मालवों को पराजित करने का विवरण मिलता है। दशरथ शर्मा का मत है कि उत्तम भद्र पंजाब के क्षत्रियों की एक शाखा थी जिसने अजमेर पुष्कर के उर्वरक क्षेत्र पर अधिकार कर लिया था। इस तरह मालवों की शक्ति कुछ समय के लिए क्षीण हो गई। उधर रूद्रदामा के जूनागढ़ अभिलेख से भी ज्ञात होता है कि 150 ई. के बाद पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश भाग पर शकों का अधिकार हो गया था। ऐसी स्थिति में मालवों का स्वाधीनतापूर्वक रहना कठिन था। नांदसा यूप लेख से संकेत मिलता है कि बाद में शकों के गहृ युद्ध में लिप्त हो जाने का लाभ उठाकर मालव पुनः स्वतंत्र हो गए थे। नांदसा यूप लेख 226 ई. का है उससे ज्ञात होता है कि मालव नेता श्रीसोम अथवा नंदीसोम ने एक षष्ठीरात्री यज्ञ करके अपने गण की स्वतंत्रता की घोषणा की थी। नांदसा के एक अन्य लेख में उनके सेनापति भीट्टसोम का नाम मिलता है। इससे स्पष्ट है कि दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान पर मालवों का शासन था। अब मालवगण धीरे-धीरे कुलीन तंत्र में परिवर्तित हो गया था। नांदसा यूप लेख मालवों की आनुवांशिक शासन प्रणाली का संकेत देकर तथा उन्हें इक्षवाकु वंश से जोड़कर गौरव अनभुव करने की सूचना देता है। काशीप्रसाद जायसवाल का मत है कि द्वितीय शताब्दी ईस्वी में नाग वंश शक्तिशाली होकर मालवा, गुजरात और राजस्थान तथा पूर्वी पंजाब के अधिपति हो गए थे, तब मालव उनके प्रतिनिधि के रूप में जयपुर, अजमेर, मेवाड़ क्षेत्र में राज्य कर रहे थे। लेकिन तीसरी शताब्दी के पूर्वार्द्ध के पश्चात् मालवों में फूट पड़ गई। डॉ. डी.सी. शुक्ल का मत है कि तीसरी शताब्दी ईस्वी के पश्चात् मालव तीन शाखाओं में विभाजित हो गए जो विजयगढ़, बड़वा, दशपुर और मंदसौर में निवास करती थीं। औलिकर (दशपुर-मंदसौर) तो स्वयं को मालावों से संबंधित मानते थे। उनके अभिलेखों में कृत मालव संवत् का प्रयोग मिलता है। ऐसा माना जाता है कि बड़वा और विजयगढ़ के शासक मालवों की ही शाखा थे। वैसे राजस्थान के अधिकांश यूप लेख मालवगण के भू-भाग के आसपास पाए गए हैं।


मालवों के संबंध में समुद्रगुप्त की प्रयाग-प्रशस्ति से भी जानकारी मिलती है। प्रयाग-प्रशस्ति के अनुसार मालव, यौधेयों, अर्जुनायन, मद्रक, आभीर, प्रार्जुन, सनकानिक काक, खरपरिक आदि गणराज्यों ने समुद्रगुप्त को कर देकर उसकी सभा में उपस्थित होने का वचन दिया, लेकिन 371 ई. के विजयगढ़ अभिलेख का अध्ययन करने पर प्रतीत होता है कि यौधेय गण अभी तक स्वतंत्रता का उपभोग कर रहे थे। मालवों का उल्लेख पुराणों (भागवत) में भी मिलता है। भागवत पुराण में मालवों का स्वतंत्र शासक के रूप में और विष्णु पुराण में आबू के शासक के रूप में उल्लेख मिलता है। समुद्रगुप्त के बाद मालव मंदसौर की ओर पलायन कर गए। स्कन्दगुप्त के समय वे प्रयाग तक चले गए। उदयपुर जिले के वल्लभनगर तहसील के बालाथल ग्राम जहाँ डॉ ललित पांडेय ने उत्खनन करवाया था, वहाँ से प्राप्त मृदभांडो पर ब्राह्मी का ‘म’ उत्कीर्ण है। इसीलिए इसे मालव प्रभावित क्षेत्र माना जा सकता है। इनकी दो मुद्राएँ मेवाड़ के नगरी मध्यमिका से प्राप्त हुई है, जिससे स्पष्ट है कि मालव राजस्थान के पूर्वी एवं दक्षिणी भाग के शासक थे।


ई.वी. सन् की प्रारंभिक शताब्दियों में मालवों का शकों के साथ संघर्ष होने का विवरण नासिक गुहालेख में मिलता है। यह संघर्ष क्षहरात वंश के साथ हुआ था। जूनागढ़ अभिलेख में रूद्रदामा प्रथम (130-150 ई.) का मालदा, गुजरात, काठियावाड़, सिन्धु, सौबीर पश्चिमी विन्ध्य तथा अरावली क्षेत्र (निषाद) और मरूक्षेत्र पर विजय करने का उल्लेख आता है। इसलिए यह निश्चित है कि उसका राजस्थान के मालवों के साथ फिर से संघर्ष हुआ होगा। ऐसी संभावना है कि मालव रूद्रदामा प्रथम के पश्चात् कार्दमक शकों में जो पारिवारिक संघर्ष हुआ, उसका लाभ उठाकर पुनः स्वतंत्र हो गए जिसकी पुष्टि नान्दसा यूप लेख, जो 226 ई. का है, उससे होती है।
स्रोत- राजस्थान का इतिहास (प्रारंभ से 1206 . तक) वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा

नांदसा यूप : प्राचीन स्तंभों की परंपरा का प्रमाण 

- डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू की कलम से ....



मेवाड़ से प्राचीन यूप मिले हैं। ये यूप स्तकम्भ की तरह ऊंचाई वाले और लिंग के आकार के बने हैं। इनमें भीलवाड़ा जिले के नांदसा गांव का यूप भारतीय विक्रम संवत के इतिहास ही नहीं, यज्ञ, दान, पुराण, स्मृति आदि कई परंपराओं के अध्यीयन और साक्ष्ये की दृष्टि से महत्वै रखता है। राजस्थान के यूपाभिलेखों में इस यूप का प्राचीनतम होने से खासा महत्व रहा है। इस पर भी खास बात ये कि नांदसा में दो यूप है और दोनों ही लेखांकित है। वहां मौजूद यूप पर जो लेख है, वह ब्राह्मी लिपि में हैं। दाएं से बाएं और ऊपर से नीचे समानत: लिखा गया है ताकि एक पाठ नष्ट, भी हो जाए तो दूसरा बच जाए। है न दूरदर्शिता। इसमें 61 दिन तक चलने वाले यज्ञसत्र का उल्लेख है, बृहद वैदिक यज्ञ का महत्वूपूर्ण अभिलेखीय साक्ष्य है।


हालांकि नांदसा गांव के निवासी इसका यही महत्व समझते हैं कि कभी-कभार कोई लोग इसको देखने आते हैं और इस पर कुछ लिखा हुआ है। वे यह मान्यता भी लिए हुए है कि पांडव कभी इधर आए थे और भरख गांव के मगरे से भीम ने जो तीर चढाकर फेंका था, वह यही है…। मुझे 1990 में नांदसावासियों से यह जनश्रुति सुनकर अजीब भी लगा, फिर याद आया कि ऐसी ही कहानियां अशोक के स्तंभों के साथ भी जुड़ी रही है। दरअसल, उनको जब मेरे एक अखबार के लेख से सूचना मिली कि यह मालवों की दिग्विजय का सूचक यूप है और इसमें संभवत: उसी सोम राजा का जिक्र है जिसका जिक्र विष्णुपुराण में हुआ है तो कुछ ग्रामीणों ने पत्र आदि के माध्यम से मेरा इस बात के लिए आभार माना कि यह तो गजब हो गया।


इस यूप पर कृतसंवत 282 का अभिलेख है, विक्रम संवत के नामकरण से पूर्व यही संवत मान्य था। ईस्वी सन् 226 में चैत्र मास की पूर्णिमा को यह रोपा गया था। तब गणित में इकाई, दहाई सैकडा कैसे होते थी, देखिए इसकी पहली पंक्ति –


सिद्धम्।


कृतयोर्द्वयोव्वनर्ष शतयोद्वयशीतयो : 200 80 2


चेत्रपूर्ण्णदमासीं मस्या म्पू र्वायां…।




इसमें दो सौ बयासी संख्या लिखने के लिए आज की तरह 282 नहीं लिखा बल्कि वर्णों के साथ ही 200, 80 और 2 लिखा गया है। इनका जोड़ 282 होता है, क्यों तब तक इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि को एकीकृत करके नहीं लिखा जाता था? यह विचारणीय है मगर यह बड़ा सच है कि जिस विक्रम संवत पर देश को अभिमान है, उसका प्राचीनतम प्रमाण मेवाड़ का नांदसा अपनी कोख में लिए हुए है। यही नहीं, इस यूप की बदौलत ही इस गांव में देश के कई ख्यातिलब्ध इतिहासकारों के पांव इस गांव में पड़े, शायद आज उनकी स्मृतियों के चिह्न भी मौजूद नहीं है, ये हैं – मि. कार्लायल, आर. आर. हल्दमर, गौरीशंकर हीराचंद ओझा, प्रो. भाण्डारकर, डी. सी. सरकार आदि।


सौजन्य- राजस्थान के प्राचीन अभिलेख – संपादक-अनुवादक डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू’, प्रकाशक राजस्थानी ग्रंथागार, सोजती गेट, जोधपुर, 2013 ई. पृष्ठ 22-24

 

ये भी पढ़ें- राजस्थान में यौधेय गण का ऐतिहासिक विवरण 

राजस्थान में आर्जुंनायन, राजन्य, आभीर, शूद्र, उदिहिक एवं शाल्व गण

राजस्थान में शिबि जनपद -Shibi Janpada in Rajasthan

Comments

  1. नगर/ कर्कोट(टोंक)

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  2. मालवगण जाती से सम्बंधित बुक है आपके पास

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    1. नहीं है भाई...

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    2. Sir, I have submitted that "present time Mali caste people in Rajasthan,are real decedents of ancient Malav Gana.Since, these people are socially, educationally and politically backward, they are not aware about their graceful history".But, it is not showing in comment box. Kindly check it and update it.

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    3. Sir,How much time is prescribed for approval of a comment, so that I can see it later on.

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  3. Replies
    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद व आभार ...

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  4. Present day,Mali caste prominently found in Rajasthan, MP,Maharashtra, UP and rarely scattered in other states, is actually real descendants of ancient Malav Gana/ tribe.Presently, this Malav Gana (Mali caste) is socially, educationally and politically backward caste in India. A major population of this caste had been converted in Pakistan during partition. Conversation of this caste also took place in Rajasthan and Gujrat.Some clever people of other caste, are trying to snatch Malav history and identity of these Mali or Malav people/caste by creating a false Mali gotra in their caste as this malav /mali caste is socially and educationally and politically backward in present time and has not much awareness about happenings/development in day to day life in our country.

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  5. Sir, I have submitted that "present time Mali caste people in Rajasthan,are real deceidents ancient Malav Gana.Since, these people are socially, educationally and politically backward, they are not aware about their graceful history".But, it is not showing in comment box. Kindly check it and update it.

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  6. Comments are not uploading and also not visible. Please simplify the procedures.

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  7. Great and prominent people of Malav Gana (Mali caste) are: (1)Saint Lakshmi Jee Maharaj (samadhi at Nagour in Rajasthan,(2)Tyag ki Murty Gora Dhay Ma,Mandour,Jodhpur, Rajasthan, she saved Prince Ajeet Singh from Mughals(Her memorial chhatari is in Jodhpur)(3)Hema Gehlot,Mandour,Jodhpur, Rajasthan, fought with mughals to save Mandour. (II)Maharashtra(1)Saint Savta Mali, devotee of bhagwan Biththal Bath(2)Kranti Surya Mahatma Jyoti Rao Phule,& Kranti Jyoti Savitribai Phule,fought against unscientific and inhuman "Varna Vyavastha and opened first girls' schools in 1848 in Pune (III)Bihar:Nakshatra Mali,fought against feudalism during British period

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  8. Malav Gana(also known as malloi, Mulu,Mali,Malian, Maliar in history), referred in bhishm Parva of Mahabharata and panini grammar ,an ancient tribe/Gana in India, resided near sangam of Ravi and Vitasta and its banks and in and around surrounding areas of Multan,in olden days Punjab. They fought with Alexander in 326 BC, during Alexander's Malian campaign. Alexander entered in their fort like structure, made up of mud near sangam of Ravi and Vitasta, but an arrow of Malav wounded him, then infuriated soldiers killed Malav people brutally, even they Malav women and children. Many Malav women burned themselves, to save them Greek soldiers, it was first recorded Jouhar in Indian history. After this defeat, Malav migrated towards south east side and entered in Rajasthan and reached upto Malva area in Madhya Pradesh. They started Malav samvat,after occupying Malva area, name Malva derived from Malav, Malav samvat is 57 years older then Vikram's samvat. Malav introduced their coins after occupying karkotak nagar area near present day Tonk in Rajasthan, inscribed as "Malavanam Jay". Bhilwara " Yoop"(Pillars) are also historical evidence, that Malav people occupied that area. Later time, Malav were defeated by other strong tribes, and became a weak and forgotten tribe/Gana (now present time Mali caste ).

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    1. In Malva area, Malav Gana people were defeated by Uttambhadra s(western kshatrpa. Malav Gana people became very weak in their original area in and around Multan and their area was occupied by other strong tribes

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    2. Malav Gana people (ancestors of present day Mali caste) were defeated by Uttambhadras(western Kshatrapa)in Malva and surrounding areas and later on, they became weak and forgotten in history. They also became very weak in their original area in and around and surrounding areas of Multan and sangam area of Ravi and Chenab and it's banks and their area was occupied by other strong tribes in ancient times.

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  9. Saint Savta Mali (1250-1295) was born at Aranbhendi,near Pandharpur, Maharashtra. He was from varkari vaishnava sect of Hinduism. He was extreme devotee of Bhagwan Biththal Nath Jee (Lord Krishna), temple at Pandharpur, Maharashtra. He was contemporary of Saint Namdev in Maharashtra.He was a great saint from Malav Gana (Mali caste) in Maharashtra.

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  10. At present following people are notable persons of Mali caste (Malav Gana): 1)Shri Ashok Gehlot, Politician, Chief Minister, Rajasthan, (2)Shri Chagan Bhujbal,Politician, ex.Dy. chief minister, Maharashtra,(3) Shri Hari Narke,writer and social worker,Pune,Maharashtra, (4)Shri Kundan Mali, writer (Hindi and Rajasthani)(5)Shri Nekchand Saini,Architect, Rock garden, Chandigarh

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    1. Malav ka mtlb Mali caste nhi h bhai..... I'm belong to Malav family. And meri caste Dhakad hai. Not Mali. Hum malav abhi tk bhi h Rajasthan m. Or yeh Ashok gehlot hum malav caste m nhi aata hai. Malav ko (dhakad caste) bola jata. Mali caste or dhakad caste m zameen aasman ka fark hai. Malav means (Dhakad) not Mali. Ok

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  11. Jay Kranti Surya Mahatma Jyoti Rao Phule,Jay Kranti Jyoti Savitribai Phule, Jay Saint Savta Mali(all from Maharashtra), Jay Saint Lakshmi Jee Maharaj(Samadhi at Nagour,Jay Veerangana Gora Dhay Ma (Mandour, Jodhpur)(saved infant Prince Ajeet Singh of Jodhpur state from Mughals),"Jay Malav Mali Gana","Jay Malav Mali Samaj","Malvanam Jay"

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  12. Dr Ambedkar said that those (Quom) ,who forget their history, can not make history. Mali caste people have forgotten about their glorious Malav history and identity. They must recollect and remember history that they are descendants of ancient and historical"Malav Gana ". " Jay Mali Malav Gana ", " Jay Mali Malav Samaj "," Malvanam Jay ".

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  13. Namaste,thanks a lot, for providing space to me in your blog.

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  14. Present day ,Mali caste people have forgotten their glorious ancient history of /as "Malav Gana" people, they must recollect and remember their ancient historical past as Mali caste people are descendants of ancient Malav Gana people.Since,those forget their history, can not make history."Malvanam Jay "

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  15. Mali caste people recollect and remember their ancient and glorious Malav Gana history and identity and must be proud enough as they are descendants of Malav Gana people (ancestors of present day Mali caste people), Since, those who forget their history, Can not make history.

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  16. After occupying Malva area, Malav people (ancestors of present day Mali caste people) migrated towards Maharashtra and later spread in other parts of India.They were defeated by Uttambhadras (western kshatrapa)in Malva area and became weak and migrated in Maharashtra and other States in India. (2)In their original area in and around Multan and sangam of Ravi and Chenab and it's banks (now in Pakistan), they became very weak and residue population of Mali caste people (descendants of Malav gana people)converted in Islam and now known as maliar.

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  17. Correction: Rao Hem Singh Gehlot(Hema Gehlot) from Mali (Malav)caste fought against Turks in 1395AD and saved Mandour in Jodhpur from Turks.Title of Rao was awarded to him by then Maharaja of Jodhpur state.

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  18. Correction: Rao Hem Singh Gehlot(Hema Gehlot) from Mali (Malav)caste fought against Turks in 1395AD and saved Mandour in Jodhpur from Turks.Title of Rao was awarded to him by then Maharaja of Jodhpur state.

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  19. Rao Hem Singh Gehlot(Hema Gehlot) fought with Turks in 1395AD and saved Mandour in Jodhpur from Turks.Rao title was awarded to him by then Maharaja of Jodhpur state.

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  20. Malav Gana people (ancestors of present day Mali caste people), were originally residing in and around Multan and sangam area of Ravi and Chenab and it's banks in ancient Punjab since time unknown, they are referred in Bhism Parva of Mahabharata and Panini "s grammar.Basically, Malav Gana people were agrarian and ayudhjivi(to protect themselves) tribe and having skills in production and trade of flowers, so after being defeated by Alexander" s army in 326BC, they migrated towards south east side in present day Rajasthan and Malva and further in Maharashtra and later spread in other parts of India.Thus,after migration, wherever, Malav Gana people settled, they adopted floriculture as a profession for their survival.

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Baba Mohan Ram Mandir, Bhiwadi - बाबा मोहनराम मंदिर, भिवाड़ी साढ़े तीन सौ साल से आस्था का केंद्र हैं बाबा मोहनराम बाबा मोहनराम की तपोभूमि जिला अलवर में भिवाड़ी से 2 किलोमीटर दूर मिलकपुर गुर्जर गांव में है। बाबा मोहनराम का मंदिर गांव मिलकपुर के ''काली खोली''  में स्थित है। काली खोली वह जगह है जहां बाबा मोहन राम रहते हैं। मंदिर साल भर के दौरान, यात्रा के दौरान खुला रहता है। य ह पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है और 4-5 किमी की दूरी से देखा जा सकता है। खोली में बाबा मोहन राम के दर्शन के लिए आने वाली यात्रियों को आशीर्वाद देने के लिए हमेशा “अखण्ड ज्योति” जलती रहती है । मुख्य मेला साल में दो बार होली और रक्षाबंधन की दूज को भरता है। धूलंड़ी दोज के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा मोहन राम जी की ज्योत के दर्शन करने पहुंचते हैं। मेले में कई लोग मिलकपुर मंदिर से दंडौती लगाते हुए काली खोल मंदिर जाते हैं। श्रद्धालु मंदिर परिसर में स्थित एक पेड़ पर कलावा बांधकर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा हर माह की दूज पर भी यह मेला भरता है, जिसमें बाबा की ज्योत के दर्शन करन...

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋत...

Civilization of Kalibanga- कालीबंगा की सभ्यता-
History of Rajasthan

कालीबंगा टीला कालीबंगा राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में घग्घर नदी ( प्राचीन सरस्वती नदी ) के बाएं शुष्क तट पर स्थित है। कालीबंगा की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इस सभ्यता का काल 3000 ई . पू . माना जाता है , किन्तु कालांतर में प्राकृतिक विषमताओं एवं विक्षोभों के कारण ये सभ्यता नष्ट हो गई । 1953 ई . में कालीबंगा की खोज का पुरातत्वविद् श्री ए . घोष ( अमलानंद घोष ) को जाता है । इस स्थान का उत्खनन कार्य सन् 19 61 से 1969 के मध्य ' श्री बी . बी . लाल ' , ' श्री बी . के . थापर ' , ' श्री डी . खरे ', के . एम . श्रीवास्तव एवं ' श्री एस . पी . श्रीवास्तव ' के निर्देशन में सम्पादित हुआ था । कालीबंगा की खुदाई में प्राक् हड़प्पा एवं हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इस उत्खनन से कालीबंगा ' आमरी , हड़प्पा व कोट दिजी ' ( सभी पाकिस्तान में ) के पश्चात हड़प्पा काल की सभ्यता का चतुर्थ स्थल बन गया। 1983 में काली...