भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम 'मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993' के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर 'राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग' एवं राज्य स्तर पर 'राज्य मानव अधिकार आयोग' को स्थापित करने की व्यवस्था की गई है। 'मानवाधिकार' शब्द मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (घ) में परिभाषित है, जिसके अन्तर्गत मानवाधिकार से अभिप्राय है संविधान में उल्लिखित अथवा अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा में अंगीभूत व्यक्ति की जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा से संबंधित अधिकार जो न्यायालय द्वारा लागू योग्य हो।
'मानवाधिकार' की परिभाषा इस प्रकार काफी व्यापक है, जिसके अन्तर्गत वे सब मुद्दे आते हैं जो जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा के परिधि के भीतर हैं।
'मानवाधिकार' की परिभाषा इस प्रकार काफी व्यापक है, जिसके अन्तर्गत वे सब मुद्दे आते हैं जो जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा के परिधि के भीतर हैं।
राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग देश के अग्रणी राज्य आयोगों में से एक है। इस आयोग ने अल्प अवधि में ही मानव अधिकारों के संरक्षण एवं उन्नयन को बढ़ावा देने के लिये अपने उद्देश्य में कई मील के पत्थर हासिल किए हैं।
राजस्थान की राज्य सरकार ने दिनांक 18 जनवरी 1999 को एक अधिसूचना जारी कर राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग के गठन का प्रावधान किया, जिसमें मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के प्रावधन के अनुसार एक पूर्णकालिक अध्यक्ष एवं चार सदस्य रखे गए थे। राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2000 में अध्यक्ष एवं चार सदस्यों की नियुक्ति कर आयोग का विधिवत गठन किया गया और मार्च, 2000 से यह आयोग क्रियाशील हो गया था। मानव अधिकार संरक्षण (संशोधित) अधिनियम, 2006 के अनुसार राज्य मानव अधिकार आयोग में एक अध्यक्ष और दो सदस्य का प्रावधान किया गया है।
वर्तमान में आयोग के अध्यक्ष श्री प्रकाश टाटिया है। आयोग की प्रथम अध्यक्ष जस्टिस सुश्री कान्ता भटनागर थी।
आयोग के पूर्व अध्यक्ष -
क्र.सं. | नाम | पदनाम | पदधारण की तिथि | पद छोड़ने की तिथि |
1 | जस्टिस सुश्री कान्ता भटनागर | अध्यक्ष | 23.03.2000 | 11.08.2000 |
2 | जस्टिस एस. सगीर अहमद | अध्यक्ष | 16.02.2001 | 03.06.2004 |
3 | जस्टिस एन. के. जैन | अध्यक्ष | 16.07.2005 | 15.07.2010 |
आयोग के उद्देश्य एवं कार्यकलाप
राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग का मुख्य उद्देश्य राज्य में मानव अधिकारों की रक्षा हेतु एक निगरानी संस्था के रूप में कार्य करना है। 1993 के अधिनियम के अन्तर्गत धारा 2 (घ) में मानव अधिकारों को परिभाषित किया गया है और इन न्यायोचित अधिकारों को भारतीय कानून के तहत अदालती आदेश द्वारा लागू कराया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर 10 दिसम्बर 1948 में मानव अधिकारों को परिभाषित कर सम्मिलित किया गया है और जिन्हें सख्ती से लागू किया जाना है।
राज्य मानव अधिकार आयोग, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अन्तर्गत एक स्वशाषी उच्चाधिकार प्राप्त मानव अधिकारों की निगरानी संस्था है। इसके स्वायतता हेतु आयोग के अध्यक्ष एवं नियुक्ति की प्रक्रिया इस प्रकार रखी गई है, जिससे उनके कार्य करने की स्वतंत्रता सुरक्षित रहे, साथ ही उनका कार्यकाल पूर्व में ही निश्चित कर दिया गया है और अधिनियम की धारा 23 के अन्तर्गत वैधानिक गारन्टी प्रदान की गई है और अधिनियम की धारा 33 के अन्तर्गत वित्तीय स्वायतता भी प्रदान की गई है। आयोग का उच्च स्तर आयोग के अध्यक्ष, सदस्य एवं अधिकारीगण के स्तर से परिलक्षित होता है। अन्य आयोगों से भिन्न, आयोग के अध्यक्ष पद पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ही नियुक्त किया जा सकता है और इसी प्रकार, आयोग सचिव राज्य सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी से कम स्तर का अधिकारी नहीं हो सकता। आयोग की अपनी एक अन्वेषण एजेन्सी है, जिसका नेतृत्व ऐसे पुलिस अधिकारी जो महानिरीक्षक पुलिस के पद से कम स्तर का नहीं हो, द्वारा किया जाता है। आयोग का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी आयोग का सचिव होता है।
आयोग निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का निष्पादन करेगा, अर्थात्:-
(1) मानवाधिकारों का उल्लंघन अथवा दुष्प्रेरण, अथवा
(2) ऐसे उल्लंघन को रोकने में लोक सेवक द्वारा लापरवाही से संबंधित अर्जी प्रस्तुत किये जाने पर जाँच-पड़ताल करना.
(3) मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित किसी कार्रवाई में दखल देना (यदि कार्रवाई किसी न्यायालय में लंबित है तो उस न्यायालय के अनुमोदन के पश्चात).
स्वप्रेरणा से अथवा किसी पीड़ित अथवा उसके/उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित कार्य भी किए जा सकते हैं -
- राज्य सरकार के नियन्त्रणाधीन किसी कारागार या कोई अन्य संस्था का, जहां पर उपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनार्थ व्यक्तियों को रखा जाता है या निरूद्ध किया जाता है, में निवास करने वालों की जीवन दशाओं का अध्ययन करने के लिए निरीक्षण करेगा।
- मानवाधिकार के संरक्षण के लिए संविधान अथवा तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि द्वारा अथवा अधीन उपबंधितरक्षोपायों का पुनर्विलोकन करना
- उन बातों का पुनर्विलोकन करना जो मानवाधिकार के उपभोग में अवरोध पैदा करती है
- मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध तथा उसका संवर्धन करना
- मानवाधिकार का प्रसार करना तथा प्रकाशन, मिडिया, सेमिनार या अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से इनके संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षोपाय की जागरूकता को बढ़ावा देना
- मानवाधिकार के क्षेत्र में गैर सरकारी संगठनों एवं संस्थाओं के प्रयासों को प्रोत्साहित करना
- अन्य ऐसे कृत्यों का पालन करना जिसे आयोग मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए आवश्यक समझे
यद्यपि सामान्य रूप से आयोग लोक सेवक द्वारा मानवाधिकार का उल्लंघन (अथवा उसका दुष्प्रेरण) से संबंधित मामले की जाँच पड़ताल करेगा, परन्तु जहाँ आम नागरिक द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन होता हो और यदि ऐसे उल्लंघन को रोकने में लोक सेवक असफल रहे हों अथवा उसकी अवहेलना करें तो वैसे मामलों में भी आयोग हस्तक्षेप कर सकता है।
आयोग की गतिविधियां -
आयोग के कार्य क्षेत्र में सभी प्रकार के वे मानव अधिकार आते हैं जिनमें नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं। आयोग हिरासत में हुर्इ मौतों, बलात्कार, उत्पीड़न, पुलिस और जेलों में ढांचागत सुधार, सुधार गृहों, मानसिक अस्पतालों की हालत सुधारने के मामलों पर विशेष ध्यान दे रहा है। समाज के सबसे अधिक कमजोर वर्ग के लोगों के अधिकारों का संरक्षण करने की दृष्टि से, 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को आवश्यक तथा निशुल्क शिक्षा प्रदान करने, गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करने, माताओं और बच्चों के कल्याण हेतु प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की, आयोग ने सिफारिशें की हैं। समानता और न्याय का हनन कर, नागरिकों के खिलाफ किए जा रहे अत्याचारों, विस्थापित हुए लोगों की समस्याएं, और भूख के कारण लोगों की मौंतें, बाल श्रमिकों का शोषण, बाल वेश्यावृत्ति, महिलाओं के अधिकारों आदि पर आयोग ने अपना ध्यान केन्द्रित किया है।
अपनी व्यापक रूप से बढ़ती हुर्इ जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए आयोग ने शिकायतों की जांच के अलावा निम्नलिखित कार्यों को भी अपने हाथ में लिया है:
- पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के अधिकार के दुरूपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश।
- जिला मुख्यालय में‘ ‘मानव अधिकार प्रकोष्ठ’’ की स्थापना।
- हिरासत में हुर्इ मौतों, बलात्कार और मानवीय उत्पीड़न को रोकने के उपाय।
- व्यवस्थागत सुधार (1) पुलिस (2) जेल (3) नजर बन्दी केन्द्र।
- माताओं में अल्प रक्तता और बच्चों में जन्मजात मानसिक अपंगता की रोकथाम।
- एचआर्इवी/एड्स से पीड़ित लोगों के मानव अधिकार।
- मानसिक अस्पतालों की गुणवत्ता में सुधार।
- हाथ से मैला ढोने की प्रथा समाप्त करने के लिए प्रयास।
- गैर-अधिसूचित और खानाबदोश जनजातियों के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए सिफारिशें करना।
- जनस्वास्थ्य प्रदूषण नियंत्रण, खाद्य पदार्थो में मिलावट की रोकथाम, औषधियों में मिलावट व अवधि पार औषधियों पर रोक।
- धर्म, जाति, उपजाति आदि के बहिष्कार के मामले।
- मानव अधिकारों की शिक्षा का प्रसार और अधिकारों के प्रति जागरूकता में वृद्धि।
इस प्रकार मानवाधिकार का उल्लंघन पुलिस ज्यादती, अभिरक्षा मृत्यु, मुठभेड़ में मृत्यु, पुलिस या अन्य पदाधिकारी/लोक सेवक द्वारा व्यक्तियों को परेशान करना तक ही सीमित नहीं है। इसके अन्तर्गत अन्य सिविल, राजनीतिक, शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों, जिससे रिमांड होम या कारागारों की दशा, मजदूर वर्ग की दशा, दहेज मृत्यु या दहेज की मांग, बलात्कार और हत्या, लैंगिक प्रताड़ना, महिलाओं पर अत्याचार एवं अप्रतिष्ठा, बाल मजदूर और बंधुआ मजदूर, बाल-विवाह, समुचित शैक्षणिक सुविधाओं से वंचित करना, गरीबी उन्मूलन तथा सामाजिक सुरक्षा संबंधित कार्यक्रम, समुचित स्वच्छता की दशाएँ, स्वस्थ वातावरण आदि से संबंधित अधिकार भी प्राप्त हैं, यदि वे अधिकार न्यायालयों द्वारा बाध्य किये जाने योग्य हों।
स्रोत- http://www.rshrc.rajasthan.gov.in/
26 January
ReplyDeleteसर हम जुडना चाहते हे हमे क्या करना होगा
ReplyDeleteकृपया राज्य मानवाधिकार जयपुर से संपर्क करें।
Deleteशिकायत कर ने के लिए क्या करने के लिए ।
Deleteक्या करना पड़ेगा।
I deeply appreciate your views
ReplyDeleteThanks..
DeleteGood help
ReplyDeleteThanks you so much..
DeleteRajasthan manavadhikar Aayog me Adhyaksh ke Alawa kitne sadasya He
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