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भारत का भौतिक स्वरूप - भारत के भू-आकृतिक विभाग

भारत का भौतिक स्वरूप - भारत के भू-आकृतिक विभाग

भारत भौतिक विविधताओं का देश है। यहाँ लगभग सभी प्रकार की स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत के कुल क्षेत्रफल के 29.3 प्रतिशत भाग पर पर्वत, 27.7 प्रतिशत भाग पर पठार तथा 43 प्रतिशत भाग पर मैदान फैले हुए हैं। भू-आकृतिक दृष्टि से भारत को चार विभागों में बाँटा जा सकता है-
1. उत्तरी विशाल पर्वत, 
2. उत्तरी विशाल मैदान, 
3. विशाल पठार, 
4. तटवर्ती मैदान और द्वीप समूह।

उत्तरी विशाल पर्वत-

भारत की उत्तर सीमा पर स्थित कश्मीर की उत्तरी पर्वत श्रृंखलाएँ तथा पठार, खास हिमालय पर्वत और अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, असम, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय की पहाड़ियाँ सम्मिलित हैं। इन सभी को तीन वर्गों में रखा जा सकता है।

(i) हिमालय पर्वत           (ii) हिमालय पार की पर्वत श्रेणियाँ         (iii) पूर्वाचल या पूर्वी पहाड़ियाँ। 

(i) हिमालय पर्वत

हिमालय संसार की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में 2500 किलोमीटर की दूरी में फैला है। जम्मू-कश्मीर में सिंधु नदी के महाखड्ड से लेकर अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र के महाखड्ड तक हिमालय का विस्तार है। इसकी चौड़ाई पूर्व में 150 किलोमीटर से लेकर पश्चिम में 400 किलोमीटर तक है। हिमालय लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसकी तीन प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ हैं। इन पर्वत श्रेणियों के बीच-बीच में गहरी घाटियाँ और विस्तृत पठार है। हिमालय के ढाल भारत की ओर तीव्र तथा तिब्बत की ओर मंद हैं।
हिमालय पर्वत पश्चिम बंगाल के मैदानी भाग से एकदम ऊपर उठे हुए दिखाई पड़ते हैं।
यही कारण है कि इसके दो सर्वोच्च शिखर, एवरेस्ट (नेपाल में) और काँचनजुंगा, मैदानी भाग से ज्यादा दूरी पर नहीं है। इसके विपरीत हिमालय का पश्चिमी भाग मैदानी क्षेत्र से धीरे-धीरे ऊपर उठा है। इसी कारण यहाँ ऊँची चोटियों और मैदानों के बीच कई श्रेणियाँ मिलती हैं। इसीलिए इस भाग की ऊँची चोटियाँ जैसे नंगा पर्वत, नंदा देवी, बद्रीनाथ आदि मैदानी भाग से काफी दूर हैं।
हिमालय में तीन समान्तर पर्वत श्रेणियाँ स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। ये पर्वत श्रेणियाँ निम्नांकित है-

          (क) हिमाद्रि,                (ख) हिमाचल,                  (ग) शिवालिक।

(क) हिमाद्रि (सर्वोच्च हिमालय)-

यह हिमालय की सबसे उत्तरी तथा सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है। हिमालय की यही एक पर्वत श्रेणी ऐसी है, जो पश्चिम से पूर्व तक अपनी निरन्तरता बनाए रखती है। इस श्रेणी की क्रोड ग्रेनाइट शैलों से बनी है, जिसके आस-पास कायान्तरित और अवसादी शैलें भी मिलती हैं। इस श्रेणी के पश्चिमी छोर पर नंगापर्वत शिखर (8126 मी.) तथा पूर्वी छोर पर नामचावरवा शिखर (7756 मी.) है।
इस पर्वत श्रेणी की समुद्र तल से औसत ऊँचाई लगभग 6100 मी. है। इस क्षेत्र में 100 से अधिक पर्वत शिखर 6100 मी. से अधिक ऊँचे हैं। संसार की सबसे ऊँची पर्वत चोटी एवरेस्ट (8848 मी.) इसी पर्वत श्रेणी में स्थित है। काँचनजुँगा (8598 मी.) मकालू, धौलागिरि तथा अन्नपूर्णा आदि हिमाद्रि की अन्य चोटियाँ है जिनकी ऊँचाई आठ हजार मीटर से अधिक है। काँचनजुँगा भारत में हिमालय का सर्वोच्च शिखर है।
हिमाद्रि पर्वत श्रेणी वर्ष भर हिमाच्छादित रहती है। इस हिमाच्छादित पर्वत श्रेणी में छोटी-बड़ी अनेक हिमानियाँ है। इन हिमानियों का बर्फ पिघल-पिघल कर उत्तर भारत की नदियों में बहता है जिससे वे सदानीरा बनी रहती हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री ऐसी ही हिमानियाँ हैं।
हिमाद्रि पर्वत श्रेणी को जोजीला, शिपकीला, नीति, नाथूला आदि दर्रों से होकर पार किया जा सकता है।

(ख) हिमाचल (लघु) हिमालय-

यह पर्वत श्रेणी हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित है। यह पर्वत श्रेणी 60 से 80 किलोमीटर तक चौड़ी तथा 1000 से 4500 मीटर तक ऊँची है। इसके कुछ शिखर 5000 मीटर से भी अधिक ऊँचे हैं। यह श्रेणी बहुत ही ऊबड़-खाबड़ है। इसमें संपीडन के द्वारा बड़े पैमाने पर शैलों का कायान्तरण हुआ है। अतः इस श्रेणी की रचना कायान्तरित शैलों द्वारा हुई है। इस श्रेणी के पूर्वी भाग के मन्द ढाल घने वनों से ढके हैं। अन्यत्र इस श्रेणी के दक्षिणाभिमुख ढाल बहुत ही तीव्र और वनस्पति विहीन हैं। उत्तराभिमुख ढालों पर सघन वनस्पति पाई जाती है।
कश्मीर में इस श्रेणी को पीर पंजाल तथा हिमाचल प्रदेश में धौलाधार के स्थानीय नामों से जाना जाता है। कश्मीर की सुरम्य घाटी, पीर पंजाल और हिमाद्रि श्रेणी के बीच विस्तृत है। हिमाचल पर्वत श्रेणी में ही कांगड़ा और कुल्लू की प्रसिद्ध घाटियाँ है।
हिमाचल पर्वत श्रेणियों पर ही प्रमुख पर्वतीय नगर बसे हैं। शिमला, नैनीताल, मसूरी,अल्मोड़ा और दार्जिलिंग ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध पर्वतीय नगर हैं। नैनीताल के आस-पास अनेक सुंदर झीलें हैं।

(ग) शिवालिक (बाह्य हिमालय)-

हिमालय की सबसे दक्षिण की श्रेणी शिवालिक के नाम से विख्यात है। हिमालय की हिमाद्रि और हिमाचल पर्वत श्रेणियाँ शिवालिक से पहले बन चुकी थीं। हिमाद्रि और हिमाचल श्रेणियों से निकलने वाली नदियां कंकड़-पत्थर, बालू और मिट्टी भारी मात्रा में बहाकर लाती थीं और इन्हें तेजी से सिकुड़ते टेथिस सागर में जमा कर देती थी। कालांतर में हुई हलचलों से कंकड-पत्थर और बालू के अवसादों में मोड़ पड़ गए और इस प्रकार शिवालिक श्रेणी का निर्माण हुआ। ये सबसे कम संघटित श्रेणियाँ हैं। हिमाद्रि और हिमाचल पर्वत श्रेणियों की तुलना में शिवालिक श्रेणियां कम ऊँची हैं। इनकी औसत ऊँचाई 600 मीटर है। हिमाचल और शिवालिक श्रेणियों के बीच फैली चौरस घाटियों को ‘दून’ के नाम से जाना जाता है। देहरादून की घाटी इसका उदाहरण है।

(ii) हिमालय पार की पर्वत श्रेणियाँ-

जम्मू-कश्मीर राज्य में हिमाद्रि के उत्तर में कुछ पर्वत श्रेणियां फैली हैं। इनमें जास्कर पर्वत श्रेणी हिमाद्रि के समानान्तर विस्तृत है। जास्कर के उत्तर में लद्दाख पर्वत श्रेणी है। इन दोनों पर्वत श्रेणियों के बीच सिन्धु नदी दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर बहती है। अनेक विद्वान जास्कर और लद्दाख श्रेणियों को वृहत हिमालय के ही अंग मानते हैं और उन्हें कश्मीर हिमालय में सम्मिलित करते हैं। लद्दाख पर्वत श्रेणी के उत्तर में कराकोरम पर्वत श्रेणी है। संस्कृत साहित्य में काराकोरम का नाम कृष्णगिरि है। इस पर्वत श्रेणी का एक पर्वत शिखर के2 (8611 मी.) एवरेस्ट शिखर के बाद संसार का दूसरा सबसे ऊँचा शिखर है।
जम्मू-कश्मीर राज्य के ऊत्तर-पूर्वी भाग में लद्दाख का पठार है। यह पठार हमारे देश का बहुत ऊँचा, शुष्क, और दुर्गम क्षेत्र है।

(iii) पूर्वाचल -

ब्रह्मपुत्र महाखड्ड के पार भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में फैली पहाड़ियों का सम्मिलित नाम पूर्वाचल है। इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई समुद्रतल से 500 से 3000 मी. तक है। ये पहाड़ियाँ दक्षिणी-अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा में स्थित हैं। मिश्मी, पटकाई बुम, नागा, मणिपुर और मिजो (लुशाई) तथा त्रिपुरा इस क्षेत्र की प्रमुख पहाड़ियाँ हैं। मेघालय का पठार उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों का ही एक भाग है।
इस पठार में गारो, खासी और जयन्तिया पहाड़ियाँ हैं। सरंचनात्मक दृष्टि से यह प्रायद्वीपीय भारत का ही भाग माना जाता है।
विशेष-
● हिमाद्रि, हिमाचल और शिवालिक हिमालय की तीन प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ हैं।
● जास्कर, लद्दाख तथा काराकोरम तथा इनके पूर्वी विस्तार के रूप में फैले तिब्बत, कैलाश हिमालय पार की पर्वत श्रेणियाँ हैं।
● मिश्मी, पटकाई बुम, नागा, मणिपुर, मिजो, त्रिपुरा आदि पूर्वाचल की पहाड़ियाँ हैं।

भारत का उत्तरी विशाल मैदान-




यह मैदान हिमालय के दक्षिण में तथा भारतीय विशाल पठार के उत्तर में पश्चिम से पूर्व तक विस्तृत है। यह मैदान पश्चिम में राजस्थान के शुष्क और अर्ध शुष्क भागों से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी तक फैला है। इस मैदान का क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है। यह मैदान बहुत उपजाऊ है। देश की कुल जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग इसी मैदान के असंख्य गाँवों और अनेक बड़े नगरों में रहता है।
यह मैदान उत्तर में हिमालय और दक्षिण में भारतीय विशाल पठार से बहाकर लाई गई मिट्टी से बना है। लाखों वर्षों से प्रति वर्ष पर्वतीय क्षेत्रों से मिट्टी ला कर इस मैदान में जमा करती रहती हैं। अतः इस मैदान में मिट्टी की परतें बहुत गहराई तक पाई जाती हैं। कहीं-कहीं तो इनकी गहराई 2000 से 3000 मीटर तक है।
यह मैदान एकदम सपाट और समतल है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई लगभग 200 मीटर है। समुद्र की ओर मंद ढाल होने के कारण इस मैदान में नदियाँ बहुत ही धीमी गति से बहती हैं। वाराणसी से गंगा के मुहाने तक ढाल केवल 10 से.मी. प्रति किलोमीटर है। अंबाला के आस-पास की भूमि अपेक्षाकृत ऊँची हैं। अतः यह भाग पूर्व में गंगा और पश्चिम में सतलुज नदी-घाटियों के बीच जल विभाजक का काम करता है। इस जल विभाजक के पूर्व की ओर की नदियाँ बंगाल की खाड़ी में तथा पश्चिम की ओर की नदियाँ अरब सागर में मिलती हैं। 
मैदान के अपेक्षाकृत ऊँचे भाग को ‘बाँगर’ कहते हैं। इस भाग में नदियों की बाढ़ का पानी कभी नहीं पहुँचता। इसके विपरीत ‘खादर’ मैदान का अपेक्षाकृत नीचा भाग है, जहाँ बाढ़ का पानी हर साल पहुँचता रहता है। पंजाब में खादर को ‘बेट’ कहते हैं।
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में शिवालिक पर्वत श्रेणी के साथ-साथ 10.15 किमी. चौड़ी मैदानी पट्टी को ‘भाबर’ कहते हैं। यह पट्टी कंकरीली बलुई मिट्टी से बनी है। ग्रीष्म ऋतु में छोटे-छोटे नदी-नाले इस पट्टी में भूमिगत हो जाते हैं और इस पट्टी को पार करके इनका जल धरातल पर पुनः आ जाता है। यह जल भाबर के साथ-साथ फैली 15.30 कि.मी. चौड़ी ‘तराई’ नाम की पट्टी में जमा हो जाता है।
इससे यहाँ दलदली क्षेत्र बन गया है। तराई का अधिकांश क्षेत्र कृषि योग्य बना लिया गया है।

उत्तरी विशाल मैदान को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) पश्चिमी मैदान        (ii) उत्तरी मध्य मैदान         (iii) पूर्वी मैदान          (iv) ब्रह्मपुत्र का मैदान।

(i) पश्चिमी मैदान-

इसमें राजस्थान का मरुस्थल तथा अरावली पर्वत श्रेणी का पश्चिमी बांगर क्षेत्र सम्मिलित हैं। मरुस्थल का कुछ भाग चट्टानी तथा कुछ भाग रेतीला है।
प्राचीन काल में यहाँ सरस्वती और दृषद्वती नाम की सदानीरा नदियाँ बहती थीं। उत्तरी मैदान के इस भाग में बीकानेर का उपजाऊ क्षेत्रा भी है। पश्चिमी मैदान से लूनी नदी कच्छ के रन में जाकर विलीन हो जाती हैं। सांभर नाम की खारे पानी की प्रसिद्ध झील इस क्षेत्र में है।

(ii) उत्तरी मध्य मैदान-

पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फैला है। इस मैदान का पंजाब और हरियाणा में फैला भाग, सतलुज, रावी, और व्यास नदियों के द्वारा लाई गई मिट्टी से बना है। यह भाग बहुत उपजाऊ है। इस मैदान का उत्तर प्रदेश में फैला भाग गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक नदियों के द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी से बना है। मैदान का यह भाग भी बहुत उपजाऊ है और भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पालना रहा है।

(iii) पूर्वी मैदान-

 गंगा की मध्य और निचली घाटी में फैला है। इस मैदान का विस्तार बिहार और पश्चिम बंगाल के राज्यों में है। बिहार राज्य में गंगा नदी इस मैदान के बीच से होकर बहती है। उत्तर की ओर से घाघरा, गंडक और कोसी तथा दक्षिण की ओर से सोन इसी मैदान में गंगा में मिलती हैं। पश्चिम बंगाल राज्य में जो मैदानी भाग है, उसका विस्तार हिमालय के पाद प्रदेश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक है। यहां यह मैदान कुछ अधिक चौड़ा हो गया है। इसका दक्षिणी भाग डेल्टा क्षेत्र है। इस डेल्टा क्षेत्र में गंगा अनेक वितरिकाओं में बंट जाती है। हुगली गंगा की वितरिका का सबसे अच्छा उदाहरण है। यह मैदानी भाग भी बहुत उपजाऊ है।

(iv) ब्रह्मपुत्र का मैदान-

भारतीय विशाल मैदान का उत्तर पूर्वी भाग असम में विस्तृत है। यह मैदान ब्रह्मपुत्रा और उसकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी से बना है। ब्रह्मपुत्र में अक्सर ही भयंकर बाढ़े आती हैं। बाढ़ के समय विशाल जलराशि दूर-दूर तक फैल जाती है। बाढ़ के बाद नदी अपनी धारा बदल देती है। इससे नदी की धारा में अनेक द्वीप बन गए हैं। ब्रह्मपुत्र की धारा में बना माजुली (1250 वर्ग कि.मी.) द्वीप संसार का सबसे बड़ा नदी द्वीप है। यह मैदानी भाग भी बहुत उपजाऊ है। यह मैदानी भाग तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा है। गंगा और ब्रह्मपुत्र तथा उनकी सहायक नदियों के द्वारा संयुक्त रूप से बनाए गए मैदान और डेल्टा प्रदेश में बांगलादेश स्थित हैं।

भारत विशाल पठार-

उत्तरी विशाल मैदान के दक्षिण में भारतीय विशाल पठार फैला है। यह हमारे देश का सबसे बड़ा भौतिक विभाग है। इसका क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर है। अर्थात् देश का लगभग आधा भाग पठारी प्रदेश है। यह प्राचीन चट्टानों से बना पठारी प्रदेश है। इस प्रदेश में छोटे बड़े अनेक पठार, पर्वत श्रृखलाएं और नदी घाटियां हैं।
भारतीय विशाल पठार की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर अरावली पहाड़ियां हैं। बुंदेलखंड का पठार, कैमूर तथा राजमहल की पहाड़ियां, इसकी उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी सीमा निर्धारित करती हैं। पश्चिमी घाट, सह्याद्रि तथा पूर्वी घाट, विशाल पठार की क्रमशः पश्चिमी और पूर्वी सीमाएं बनाते हैं। इस पठार का अधिकांश धरातल 400 मीटर से अधिक ऊँचा है।
इस पठार का सबसे ऊँचा स्थान अनाईमुदी शिखर (2695 मी.) है। इस पठार का सामान्य ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है। विशाल पठार अत्यन्त प्राचीन भूखंड है। यह भाग प्राचीन गोंडवानालैंड का हिस्सा रहा है। यह भाग प्राचीन काल से सदैव समुद्रतल से ऊपर रहा है। इसी से इसका बड़े पैमाने पर अनाच्छादन हुआ है। इसके पर्वत अवशिष्ट प्रकार के प्रर्वत हैं। ये पर्वत बहुत कठोर शैलों के बने हैं। इन पर अनाच्छादन की शक्तियों का प्रभाव कम पड़ा है, जबकि इनके आस पास की भूमि की शैल अपरदित होकर बह गई है। प्राचीन होने के कारण विशाल पठार की नदियों ने अपना आधार तल लगभग प्राप्त कर लिया है। वे चौड़ी तथा उथली घाटियों में बहती हैं। भारतीय विशाल पठार की विशेष रूप से इसके दक्षिणी भाग की रचना कायान्तरित और आग्नेय शैलों से हुई है। 
नर्मदा नदी ने इस विशाल पठार को दो भागों में विभाजित कर दिया है। नर्मदा नदी के उत्तरी भाग को मध्यवर्ती उच्च भूमि कहते हैं, तथा दक्षिणी भाग को प्रायद्वीपीय पठार कहते हैं। इस भाग का अधिक प्रचलित नाम दक्कन का पठार है।

(1) मध्यवर्ती उच्चभूमि -

मध्यवर्ती उच्चभूमि नर्मदा नदी के उत्तर तथा उत्तरी विशाल मैदान के दक्षिण में फैली है। इसके पश्चिमी भाग में अरावली है। अरावली गुजरात से राजस्थान होकर दिल्ली तक उत्तर-पूर्वी दिशा में 700 कि.मी. की दूरी में फैली हैं। दिल्ली के निकट इनकी समुद्रतल से ऊँचाई 400 मीटर तथा दक्षिण में 1500 मीटर तक है। गुरु शिखर (1722 मी.) अरावली का सर्वोच्च शिखर है। गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित माउण्ट आबू एक सुन्दर पर्वतीय नगर है। अरावली के पूर्व की भूमि बहुत ऊबड़-खाबड़ है। मध्यवर्ती उच्च भूमि का एक भाग मालवा के पठार के नाम से जाना जाता हैं, यह भाग अरावली के दक्षिण पूर्व तथा विध्यांचल श्रेणी के उत्तर में विस्तृत है। चंबल और बेतवा नदियाँ इस क्षेत्र का जल बहाकर यमुना में ले जाती हैं।
मध्यवर्ती भूमि का वह भाग, जो मालवा पठार के पूर्व में फैला हुआ है, बुंदेलखण्ड के पठार के नाम से विख्यात है। बुंदेलखण्ड के पूर्व में बघेलखण्ड का पठार तथा इसके और पूर्व में छोटानागपुर का पठार है। मध्यवर्ती भूमि के दक्षिणतम भाग में विंध्याचल और उत्तर पूर्व में महादेव, कैमूर तथा मैकाल की पहाड़ियां हैं। नर्मदा घाटी की ओर विध्यांचल श्रेणी के एकदम खड़े कगार हैं। इससे इसी बात की पुष्टि होती है कि नर्मदा एक भ्रंश या रिफ्ट घाटी में बहती है। इस श्रेणी में दर्रे बहुत कम हैं। अतः प्राचीन काल में यह काफी समय तक उत्तर और दक्षिण भारत के बीच अवरोध बना रहा।
विध्यांचल और सतपुड़ा के मध्य नर्मदा घाटी है। इसी घाटी में नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई, अरब सागर में मिल जाती है। विंध्याचल और सतपुड़ा श्रेणियों के बीच के भू-भाग के नीचे की ओर धंसने से इस घाटी का निर्माण हुआ है।

(ii) प्रायद्वीपीय पठार (दक्कन का पठार)-

यह भारतीय विशाल पठार का सबसे बड़ा भू-आकृतिक विभाग है। इस पठार की आकृति त्रिभुज के समान है। इसकी एक भुजा कन्याकुमारी से राजमहल पहाड़ियों को जोड़ने वाली रेखा है, जो पूर्वी घाट से होकर गुजरती है। दूसरी भुजा सतपुड़ा श्रेणी, महादेव पहाड़ियाँ, मैकाल श्रेणी और राजमहल की पहाड़ियाँ हैं। तीसरी भुजा सह्याद्रि श्रेणी (पश्चिमी घाट) है। प्रायद्वीपीय पठार का कुल क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर है तथा ऊँचाई 500 मी. से 1000 मी तक है। प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिम में सह्याद्रि श्रेणी है। अरब सागर के तट के साथ फैले खड़े ढाल वाले सह्याद्रि विस्मयकारी हैं। पश्चिम में स्थित होने के कारण इसका एक नाम पश्चिमी घाट भी है। घाट शब्द का एक अर्थ पहाड़ है। अतः इसका यह नाम भी सार्थक ही है। सह्याद्रि की औसत ऊँचाई उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है। केरल में स्थित अनाईमुदी शिखर (2695 मी.) दक्षिण भारत का सर्वोच्च पर्वत शिखर है। अनाईमुदी; अनामलाई श्रेणी, कार्डेमम पहाड़ियों और पलनी पहाड़ियों का मिलन बिन्दु है। पलनी पहाड़ियों में कोडैकानल एक सुरम्य पर्वतीय नगर है।
पूर्वी घाट प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी भाग में फैले हैं। इन्हें पूर्वाद्रि श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है। यह श्रेणी तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर स्थित नीलगिरि पर सह्याद्रि (पश्चिमी घाट) से मिल जाती है। नीलगिरि में उदगमंडलम (ऊटी) नगर दक्षिण भारत का प्रसिद्ध पर्वतीय नगर है। यह नगर तमिलनाडु में स्थित है। स्वतंत्रता से पूर्व यह मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नर का ग्रीष्मकालीन निवास स्थान हुआ करता था।
सह्याद्रि श्रेणी की भांति यह अविच्छिन्न (निरंतर) नहीं है। महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार और कावेरी नदियों ने इसे कई स्थानों पर खण्डित किया है।
सह्याद्रि और पूर्वाद्रि (पूर्वी घाट) के बीच के पठारी भाग को कई स्थानीय नामों से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश में फैला तेलंगाना का पठार प्रायद्वीपीय पठार का ही एक भाग है। प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पूर्वी भाग को बघेल खंड और छोटा नागपुर के पठार के नाम से जाना जाता है। छोटा नागपुर के पठार में बहने वाली दामोदर नदी की
घाटी में हमारे देश की प्रसिद्ध कोयला पट्टी है। यहाँ और भी बहुत से खनिज पाए जाते हैं।

तटीय मैदान-

हमारे देश का विशाल पठार चारों ओर से घिरा हुआ है। उत्तर में उत्तरी विशाल मैदान तथा दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में तटीय मैदान हैं।
पूर्वी तटीय मैदान उत्तर में गंगा नदी के मुहाने से ले कर कन्याकुमारी तक बंगाल की खाड़ी के तट के साथ-साथ फैला है। पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में यह अधिक चौड़ा है। इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के डेल्टा सम्मिलित हैं। इस मैदान में चिल्का और पुलीकट दो बड़े-बड़े अनूप (लैगून) हैं। ये झीलें बंगाल की खाड़ी के थोड़े से जलीय भाग के बालू-भित्ति के द्वारा घिर जाने से बनी हैं।
चिल्का झील महानदी डेल्टा के दक्षिण में हैं। यह 75 किलोमीटर लम्बी है। पुलीकट झील चेन्नई नगर के उत्तर में है। गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टाओं के मध्य में कोल्लेरू झील है। पूर्वी तटीय मैदान बहुत उपजाऊ है। इसमें धान की फसल बहुत अच्छी होती है। 
पश्चिमी तटीय मैदान उत्तर में कच्छ के तट से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक अरब सागर के साथ-साथ फैला है। गुजरात के मैदान को छोड़कर यह मैदान पूर्वी तटीय मैदान से कम चौड़ा है। दक्षिणी गुजरात से लेकर मुंबई तक पश्चिमी तटीय मैदान अपेक्षाकृत चौड़ा है और दक्षिण की ओर संकरा होता गया है। गुजरात, कच्छ के रन तथा काठियावाड़ के मैदानों में कहीं-कहीं चट्टानी टीले और छोटी पहाड़ियां दिखाई पड़ती हैं। गुजरात का मैदान काली मिट्टी से बना है। 
  • - उत्तर में दमण से लेकर दक्षिण में गोवा तक लगभग 500 कि.मी. का तटीय भाग कोंकण कहलाता है। यह कटा-फटा है। इसमें कई छोटी-छोटी नदियां बहती हैं। यहां कई प्राकृतिक पोताश्रय हैं।  
  • - गोवा से मंगलोर तक के तट को कर्नाटक तट कहते हैं।  
  • - मंगलौर से कन्याकुमारी तक के तट को मलाबार तट कहते हैं। यहां तटीय मैदान कुछ चौड़ा है। मलाबार तट में अनेक लंबे और सकरे अनूप हैं। 80 कि.मी. से भी अधिक लंबा वेम्बनाड ऐसा ही एक अनूप है। इसी पर कोच्चि बन्दरगाह बसा है। 

भारतीय द्वीप -

भारत में छोटे-छोटे द्वीप समूह भी हैं। एक द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के तट से कुछ दूरी पर है। यह अपेक्षाकृत बड़ा है। इसका नाम अंडमान और निकोबार द्वीप समूह है। 
दूसरे का नाम लक्षद्वीप है। यह द्वीप समूह केरल तट से कुछ दूरी पर अरब सागर में स्थित है।

अंडमान द्वीपों में निम्नांकित द्वीप सम्मिलित है-
 (i) उत्तरी अंडमान,     (ii) मध्य  अंडमान    (iii) दक्षिणी अंडमान    तथा    (iv) लघु अंडमान  
पोर्टब्लेअर नगर इस संपूर्ण संघ राज्य क्षेत्र की राजधानी है। यह दक्षिण अंडमान में स्थित है। 
दस अंश जलमार्ग इस द्वीप समूह को निकोबार द्वीप समूह से अलग करता है। निकोबार द्वीप समूह की स्थिति अंडमान द्वीप समूह के दक्षिण में है। इस द्वीप समूह में कार निकोबार, लघु निकोबार तथा वृहत् निकोबार द्वीप सम्मिलित हैं। भारत संघ का दक्षिणतम छोर वृहत् निकोबार द्वीप में है। श्रीमती इन्दिरा गांधी के नाम पर इसका नाम इन्दिरा पाइण्ट रखा गया है। ये द्वीप समूह समुद्री जल में डूबी पर्वत श्रृंखला के जैसा प्रतीत होता है। अंडमान का बैरन द्वीप भारत का अकेला जागृत ज्वालामुखी है।
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण इन द्वीपों में वायु सेना और नौसेना के अड्डे हैं। सात देशों-बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैण्ड, मलेशिया, सिंगापुर, इण्डोनेशिया और  श्रीलंका के सम्मुख इस द्वीप समूह की स्थिति है।
लक्षद्वीप समूह केरल तट के पश्चिम में अरब सागर में स्थित है। ये सभी प्रवाल द्वीप हैं। इनका निर्माण प्रवाल जैसे अत्यन्त सूक्ष्म जीवों के चूने से बने कवचों के लगातार जमाव से हुआ है। ये सभी द्वीप बहुत छोटे हैं। इनमें सबसे बड़े द्वीप मिनीकाय का क्षेत्रफल 4.5 वर्ग कि.मी. है। कवारत्ती इस द्वीप समूह की राजधानी है।

भारत का अपवाह तंत्र-

अपवाह तंत्र से तात्पर्य किसी क्षेत्र की जल प्रवाह प्रणाली से है अर्थात् किसी क्षेत्र के जल को कौन-सी नदियां बहाकर ले जाती हैं। नदी अपना जल किस दिशा में बहाकर समुद्र में मिलाती है, यह कई कारकों पर निर्भर करता है जैसे-भूतल का ढाल, भौतिक संरचना, जल प्रवाह की मात्रा तथा जल का वेग। भारत में भूमि के जल को बहाकर ले जाने वाली छोटी-बड़ी अनेक नदियां हैं। भारत के अपवाह तंत्रा को दो भागों में विभाजित करके उसका अध्ययन किया जा सकता है-
1. उत्तरी भारत का अपवाह तंत्र तथा             2. दक्षिणी भारत का अपवाह तंत्र।

1. उत्तरी भारत के अपवाह तंत्र-

भारत की नदियों में हिमालय का बड़ा महत्व है; क्योंकि उत्तर भारत की नदियों का उद्गम हिमालय और उसके पार से है। ये नदियां दक्षिण भारत की नदियों से भिन्न हैं, क्योंकि ये तेज गति से अपनी घाटियों को गहरा कर रही हैं। अपरदन से प्राप्त मिट्टी आदि को बहाकर ले जाती हैं और मैदानी भाग में जल प्रवाह की गति मंद पड़ने पर मैदानों और समुद्रों में जमा कर देती हैं। उत्तरी विशाल मैदान का निर्माण इन्हीं नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से हुआ है। हिमालय से निकलने वाली कुछ नदियां हिमालय से भी पहले विद्यमान थीं। जैसे-जैसे हिमालय की पर्वत श्रेणियां ऊपर उठती गईं, ये नदियां अपनी घाटियों को गहरा और गहरा काटती रहीं। इसके परिणामस्वरूप इन नदियों ने हिमालय की श्रेणियों में बहुत गहरी घाटियां या महाखड्ड बना लिए हैं।
बुंजी (जम्मू-कश्मीर) के पास सिंधु नदी का महाखड्ड 5200 मीटर गहरा है। सतलुज और ब्रह्मपुत्र नदियों ने भी ऐसे ही महाखड्ड बनाए हैं।
उत्तरी भारत के अपवाह तंत्र के तीन भाग हैं-

1. सिंधु का अपवाह तंत्र,             2.  गंगा का अपवाह तंत्र    तथा           3. ब्रह्मपुत्र का अपवाह तंत्र।

  • सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलुज सिंधु नदी तंत्र की प्रमुख नदियां हैं।
  • गंगा नदी तंत्र में रामगंगा, घाघरा, गोमती, गंडक, कोसी, अपनी दक्षिणी सहायक नदियों सहित यमुना, सोन और दामोदर नदियों का प्रमुख स्थान है। 
  • ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र में दिबांग, लोहित, तिस्ता, और मेघना प्रमुख नदियां हैं। दिबांग और लोहित अरूणाचल प्रदेश में, तिस्ता सिक्किम, प. बंगाल में और मेघना बांग्लादेश के उत्तर पूर्व में बहती है।

2, दक्षिण भारत का अपवाह तंत्र-

  • दक्षिण भारत एक बहुत ही पुराना भू-भाग है। इसीलिए इसकी नदियां वृद्धावस्था में हैं। इस क्षेत्र की सभी नदियां अपने आधार तल पर पहुंच गई हैं और अपनी घाटी को लंबवत् काटने की उनकी क्षमता लगभग समाप्त हो गई है।
  • अब तो ये नदियां धीरे-धीरे अपने किनारों को काट रही है, जिससे इनकी घाटियां चौड़ी होती जा रही हैं, इसी के परिणामस्वरूप इनके निचले भागों में बाढ़ का पानी बहुत बड़े क्षेत्र में भर जाता है। ऐसा विश्वास है कि हिमालय के निर्माण के समय झटके लगने के कारण दक्षिण भारत का ढाल पूर्व की ओर हो गया था। नर्मदा और तापी को छोड़कर शेष सभी बड़ी नदियां पूर्व की ओर बहती हैं। 
  • नर्मदा और तापी नदियां भ्रंश घाटियों से होकर गुजरती हैं। महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार, पालार, कावेरी और वेगाई दक्षिणी भारत के अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियां हैं।
  • दक्षिणी प्रायद्वीप के उत्तरी भाग का ढाल उत्तर की ओर है। अतः विंध्याचल-पर्वत से निकलकर कुछ नदियां उत्तर की ओर बहती हुई यमुना और गंगा में मिल जाती हैं। इनमें चंबल, सिन्ध, बेतवा, केन और सोन नदियां मुख्य हैं।

हिमालयी और प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में अन्तर-

जो नदियां हिमालय से निकलती हैं, उनमें से अधिकतर सदानीरा हैं। उनमें वर्षभर जल बना रहता है, क्योंकि शुष्क ऋतु में हिमाद्रि में फैली हिमानियों का जल पिघल-पिघल कर नदियों में बहता रहता है। परिणामस्वरूप सूखे के समय भी उनमें जल का प्रवाह बना रहता है। इसके विपरीत प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में जल कम ज्यादा होता रहता है। वर्षा ऋतु में खूब पानी होता है, जबकि लंबी शुष्क ऋतु में बहुत कम पानी रहता है। कहीं-कहीं तो वे सूख भी जाती है।

Comments

  1. Very best👍👍👍💯 please pahadi maidan ye sab kya vistar se batao

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    1. आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद ।। कोशिश करेंगे ।

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  2. आपने ने बिहार का बहुत अच्छ जानकारी दिया है. आप मेरे मार्गदर्शक हैं. आपको देखकर मैं ब्लॉगिंग शुरू किया है. आपके लेख से प्रभावित होकर मैंने भारत का चौहद्दी से संबंधित एक लेख लिखा है. कृपया मेरे वेबसाइट विजिट करें. कोई कमी हो तो कमेंट करके जरूर बताइएगा.

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    1. आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद ।।

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