राजस्थान में मत्स्य पालन विभाग की योजनाएं -
राजस्थान में बड़ी संख्या में जल निकाय जैसे नदियां, तालाब, झीलें और बांध उपलब्ध हैं, जो यहाँ मत्स्य पालन के विकास की संभावना प्रदान करते हैं। राज्य में ताजे पानी के साथ-साथ नमकीन जल संसाधन भी हैं। राज्य में मत्स्य पालन के लिए कुल 15838 जल निकाय उपलब्ध हैं जो 4,23,765 हेक्टेयर क्षेत्रफल को कवर करते हैं।इसके अतिरिक्त नदियों और नहरों का 30,000 हेक्टेयर और पूर्ण टैंक लेवल (FTL) पर 80,000 हेक्टेयर जल भराव क्षेत्र हैं। साथ ही 1.80 लाख हेक्टेयर नमकीन जल क्षेत्र है।
राजस्थान में जल संसाधन (in Ha) | ||
जल संसाधन का प्रकार |
जल निकायों की संख्या |
क्षेत्र पूर्ण टैंक स्तर पर हेक्टेयर में (FTL in Ha) |
माइनर टैंक और तालाब (<1 span="">1> |
6913 |
4745 |
मध्यम टैंक और तालाब (1.1 - 10 हेक्टेयर) |
6207 | 25516 |
बड़े टैंक और तालाब (10.1 - 100 हेक्टेयर) | 2047 |
63,648 |
छोटे जलाशय (101 -1000 हेक्टेयर) |
346 |
82,396 |
मध्यम जलाशय (1001-5000 हेक्टेयर) |
35 |
64,151 |
बड़े जलाशयों (> 5000 हेक्टेयर) |
12 |
1,83,309 |
कुल जल संसाधन |
15,561 |
4,23,765 |
नदियाँ और नहरें |
5000 km |
30,000 |
जल भराव क्षेत्र Waterlogged Areas | - |
80,000 |
नमक प्रभावित क्षेत्र Salt Affected Areas |
- |
1,80,000 |
इनमें लगभग 77% जल निकाय (संख्या में) तीन संभागों में अजमेर, उदयपुर और कोटा में मौजूद हैं जिनमें से 66% एफटीएल (फुल टैंक लेवल) क्षेत्र है। सात जिलों भीलवाड़ा, श्रीगंगानगर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, टोंक, अजमेर और उदयपुर में 25,000 हेक्टेयर एफटीएल (फुल टैंक लेवल) जल संसाधन है जो कुल संसाधन क्षेत्र का 67% है।
राज्य में पूर्व में मत्स्य विकास कार्यक्रमों का संचालन पशुपालन विभाग के अधीन था तथा 1981 तक मत्स्य पालन की गतिविधियाँ पशुपालन विभाग द्वारा ही की जा रही थी, किन्तु वर्ष 1982 में राज्य में उपलब्ध जल संसाधनों में मत्स्य विकास को गति दिए जाने की दृष्टि से राज्य सरकार द्वारा एक स्वतंत्र मत्स्य विभाग की स्थापना की गई। विभाग के अपने अलग अस्तित्व के बाद, राज्य में मत्स्य उत्पादन 28,200 मीट्रिक टन तक बढ़ गया है। मत्स्य बीज उत्पादन और भंडारण 482.41 million fry तक पहुंच गया है। मत्स्य नीलामी से राजस्व 97.5 लाख रुपये से बढ़कर 2540.55 लाख हो गया है। राज्य का औसत मत्स्य उत्पादन 200 किलोग्राम / हेक्टेयर है। लक्षित मत्स्य उत्पादन के साथ मत्स्य पालन से संबंधित गतिविधियों में लगभग 16500 किसान और मछुआरे संलग्न हैं। मत्स्य पालन विभाग मछुआरों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को ऊपर उठाने के लिए राज्य में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए राज्य और भारत सरकार के दिशानिर्देश के अनुसार विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी सहायता प्रदान कर रहा है।
राजस्थान में केवल अंतर्देशीय जल क्षेत्र में ही मत्स्य पालन किया जाता है। यहाँ मुख्यतः कतला, राहु और मृगल आदि देशी प्रजाति की मछलियां और कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प और ग्रास कार्प आदि विदेशी प्रजाति की मछलियां पाली जाती है। राज्य में वर्ष-2016-17 में मत्स्य उत्पादन 42.461 लाख टन हुआ।
मत्स्य विभाग के उद्देश्य-
1-पालन योग्य मत्स्य प्रजातियों के मत्स्य बीज का उत्पादन संग्रहण और संवर्धन2-मत्स्य उत्पादन में वृद्धि मत्स्य पालन तकनीक में प्रशिक्षण देकर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना
3-जलाशय को मत्स्य उत्पादन के लिए पट्टे पर देकर राज्य सरकार के लिए राजस्व अर्जित करना
मत्स्य विभाग की योजनाएं-
1. मानव संसाधन विकास के अन्तर्गत मत्स्य प्रशिक्षण:-
राज्य में मत्स्य पालन के इच्छुक व्यक्तियों को अधिकतम 15 दिवसीय प्रशिक्षण हेतु प्रति दिन 125/- की दर से प्रशिक्षण भत्ता दिया जाता हैं। तथा प्रशिक्षण स्थल तक आने जाने का वास्तविक किराया अधिकतम सीमा 500/- तक देय होता हैं तथा प्रशिक्षित मत्स्य कृषकों को उपलब्ध घ प्रवर्ग के जलाशयों का उपलब्धता के आधार पर लम्बी अवधि हेतु मत्स्य पालन हेतु आवंटन किया जाता है।
2. आदर्श मछुआरा गांव का विकास:-
राज्य के भूमिहीन एवं कच्चे मकान में निवास करने वाले गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले मछुआरों के आवास हेतु 35 स्क्वायर मीटर तक क्षैत्र में 50,000/- रु. की सीमा तक लागत का मकान निर्माण कर उपलब्ध करवाया जाता हैं।
3. मछुआरों का सामुहिक दुर्घटना बीमा:-
मछुआरो के कल्याण कार्यक्रम के अन्तर्गत सक्रिय मछुआरों का सामुहिक दुर्घटना बीमा करवाया जाता है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बीमा प्रिमियम की राशि राज्य सरकार व केन्द्रीय सरकार द्वारा क्रमश: 50 % : 50 % के आधार पर वहन की जाती है। बीमित मछुआरों की दुर्घटना में मृत्यु अथवा स्थाई विकलांगता होने पर 1,00,000/-रुपये तथा अस्थाई विकलांगता पर रुपये 50,000/-की राशि देय होती है। इसमें मछुआरों को कोई राशि व्यय नहीं करनी होती हैं।
4. सेविंग कम रिलीफ योजना:-
इस योजना के अन्तर्गत मत्स्य सहकारी समितियों के सदस्यों से रुपये 70/-आठ माह तक एवं 40/- रु. नवें माह में एकत्रित किये जाते हैं, जो कि 600/- रुपये होते हैं, राज्य सरकार व केन्द्रीय सरकार द्वारा बराबर अनुपात में रु0 1200/- रु. मिलाकर इस प्रकार एकत्रित राशि रु. 1800/- को निषेध ऋतु के समय 600/- रुपये प्रति माह के हिसाब से तीन माह तक उपलब्ध करवाये जाते है।
5. निजी जमीन पर मत्स्य पालन हेतु तालाब निर्माण-
निजी जमीन पर तालाब निर्माण हेतु रु. 3.00 लाख ईकाई लागत पर प्रति हैक्टर 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 60,000 की सीमा में अनुदान देय हैं। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्ति को 25 प्रतिशत या 75 हजार रु. की सीमा में अनुदान देय है।
6. पुराने जलाशय का जीर्णोद्धार-
मत्स्य कृषकों के पुराने जलाशयो के जीर्णाद्धार हेतु प्रति हैक्टर 75,000/- रु. इकाई लागत पर 20 प्रतिशत अधिकतम रु0 15000/- की सीमा में अनुदान देय है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के मत्स्य कृषकों के लिये 25 प्रतिशत अधिकतम रु. 18750/- की सीमा में अनुदान देय है।
7. मछली पालन पर प्रथम वर्ष में होने वाले उपादान पर व्यय-
मत्स्य कृषकों को मत्स्य पालन हेतु प्रथम वर्ष मे उपादान के रुप में मत्स्य बीज फीड आदि क्रय हेतु प्रति हैक्टर ईकाई लागत 50,000/- पर 20 प्रतिशत अधिकतम रु. 10,000/- की सीमा में अनुदान देय हैं। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के मत्स्य कृषकों केा 25 प्रतिशत रु. 12500/- की सीमा में अनुदान देय हैं।
8. निजी क्षैत्र मे मत्स्य बीज उत्पादन इकाई की स्थापना-
निजी क्षैत्र में मछली बीज उत्पादन हेतु 10 मिलीयन फ्राई उत्पादन की क्षमता वाली हैचरी निर्माण हेतु ईकाई लागत 12.00 लाख रु0 पर अनुदान स्वरुप 10 प्रतिशत राशि अधिकतम 1.20 लाख रु0 तक की सीमा में देय हैं।
9. फिश फीड यूनिट की स्थापना -
निजी क्षैत्र में 1.20 क्विटंल प्रति दिन उत्पादन क्षमता वाली फिश फीड यूनिट की स्थापना हेतु ईकाई लागत 7.50 लाख पर 20 प्रतिशत अनुदान के रुप में 1.50 लाख की सीमा तक अनुदान राशि देय हैं।
10- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अन्तर्गत स्वीकृत कार्यक्रम-
10.1 मत्स्य बीज पालन क्षेत्र का विकास-
उद्धेश्य
- राज्य के मौसमी पोखरों/नाड़ियों का मत्स्य बीज पालन हेतु उपयोग करना।
- ग्रामीण बेरोजगारों के लिए अतिरिक्त आय के साधन उपलब्ध कराना।
- आंगुलिक अवस्था (50 एम.एम. से अधिक) के मत्स्य बीज मांग की पूर्ति करना।
नर्सरी पोण्ड्स
- स्पाॅन से फ्राई स्तर (15 से 25 एमएम) का मत्स्य बीज तैयार करना।
- जलक्षेत्र 0.01 से 0.1 हैक्टर तक
- गहराई 0.5 से 1.5 मीटर तक
- मत्स्य बीज पालन अवधि 15 से 25 दिन
रियरिंग पोण्ड्स
- फ्राई से फिंगरलिंग (50 एम.एम. से अधिक) अवस्था का मत्स्य बीज तैयार करना
- जलक्षेत्र 0.1 से 0.5 हैक्टर
- गहराई 1.5 से 2.0 मीटर
- मत्स्य बीज पालन अवधि 1 से 3 माह
इकाई लागत
- स्वयं की जमीन पर 1 हैक्टेयर क्षेत्र में नर्सरी एवं रियरिंग पौण्ड निर्माण में अधिकतम 3.00 लाख रूपये
- ग्रामीण तलाइयों के जीर्णोद्धार पर प्रस्तावित कार्यों के अनुरूप
पात्रता
- पोण्ड्स के निर्माण हेतु स्वयं की जमीन अथवा दीर्घावधि पर आवंटित पोखर
- पानी की उपलब्धता हेतु सुनिश्चित जलस्त्रोत
- मत्स्य बीज पालन का प्रशिक्षण अथवा मत्स्य बीज पालन का पूर्व अनुभव वित्तीय सहायता
- पोण्ड्स निर्माण/जीर्णोद्धार पर होने वाले व्यय की वास्तविक राशि जो रुपये 3.00 लाख प्रति हैक्टर से अधिक नहीं होगी। उत्पादन का विपणन
- उत्पादित फ्राई/फिंगलिंग का विपणन क्षेत्र के मत्स्य पालकों/बड़े जलाशयों के अनुज्ञापत्रधारियों को किया जा सकेगा संभावित लाभ
- परियोजना से प्रति हैक्टेयर जलक्षेत्र के उपयोग से मत्स्य बीज पालक रुपये 15000 से 50000 तक की आय एक वर्ष में प्राप्त कर सकेंगे
10.2 जनसहभागिता से मत्स्य बीज उत्पादन केन्द्रों की स्थापना-
उद्धेश्य
- राज्य में मत्स्य बीज उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
- मत्स्य बीज की गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
- मत्स्य कृषकों/ठेकेदारों को उचित मूल्य पर मत्स्य बीज उपलब्ध करवाना।
मत्स्य बीज उत्पादन केन्द्र हेतु आवश्यक शर्तें-
- कम से कम 2 से 3 हैक्टर स्वयं की भूमि
- पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता
- 1 करोड़ मत्स्य बीज फ्राई की क्षमता के लिए आधारभूत इकाइयाँ जैसे अभिजनक, नर्सरी, रियरिंग पोण्ड, हैचरी का निर्माण करना आवश्यक
इकाई लागत
स्वयं की जमीन पर मत्स्य बीज उत्पादन केन्द्र निर्माण में अनुमानित व्यय रुपये 10.00 लाख
पात्रता-
- विज्ञान में स्नातक एवं मछली पालन का दो वर्ष का अनुभव
- गत तीन वर्षों से सक्रीय मत्स्य पालन / जलाशय मत्स्य विकास कर रहा हो
- गत 5 वर्षों के दौरान मत्स्याखेट / मत्स्य विकास गतिविधि से जुड़ा हो
- प्रस्तावित भूमि एवं पानी की उपलब्धता के साथ-साथ मिट्टी एवं पानी का रासायनिक विश्लेषण उपयुक्त पाया जाना
वित्तीय सहायता-
- मत्स्य बीज उत्पादन केन्द्र के आधारभूत सुविधाओं के विकास पर व्यय होने वाली राशि का 75 प्रतिशत अथवा अधिकतम रुपये 10.00 लाख की वित्तीय सहायता निम्न 4 किश्तों में:-
- प्रथम किश्त 10% परियोजना की स्वीकृति पर
- द्वितीय किश्त 30% परियोजना का 50 प्रतिशत कार्य पूर्ण होने पर
- तृतीय किश्त 30% निर्माण कार्य पूर्ण होने पर
- अंतिम किश्त 30% केन्द्र के सफल एवं संतोषप्रद संचालन पर।
सहभागिता के बिन्दु-
मत्स्य बीज उत्पादक की सहभागिता
- इकाई की स्थापना हेतु वांछित भूमि उपलब्ध कराएगा
- मत्स्य बीज उत्पादन केन्द्र का निर्माण निर्धारित मापदण्ड के अनुसार करवाने के लिए जिम्मेदार होगा
- संचालन हेतु आवश्यक मानव शक्ति एवं सुविधाएँ उपलब्ध करवाएगा
- संचालन व्यय का वहन करेगा
राज्य सरकार की सहभागिता
- आधारभूत सुविधाओं के विकास हेतु आवश्यक धनराशि अधिकतम रुपये 10.00 लाख की सीमा में उपलब्ध कराई जाएगी
- केन्द्र के निर्माण के समय तकनीकी मार्गदर्शन एवं संचालन हेतु तकनीकी सहयोग प्रदान कराया जाएगा
- अनुबन्ध
सहभागिता के आधार पर केन्द्र की स्थापना हेतु लाभार्थी एवं सरकार के मध्य अनुबन्ध संपादित किया जाएगा जिसके मुख्य बिन्दु निम्नानुसार हैंः-
- अनुबन्ध 10 वर्ष की अवधि हेतु होगा
- अनुबन्ध के दौरान लाभार्थी भूमि/केन्द्र का हस्तान्तरण/निस्तारण नहीं कर सकेगा
- विशेष परिस्थितियों में सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सहयोग राशि मय 18 प्रतिशत ब्याज (वितरण की दिनांक से) के भुगतान किए जाने पर हस्तान्तरण / निस्तारण की स्वीकृति दी जा सकेगी।
- लाभार्थी को प्रथम तीन वर्ष में उत्पादित मत्स्य बीज का 25 प्रतिशत मत्स्य बीज विभाग को बिना किसी मूल्य के उपलब्ध करवाना होगा
- अनुबन्ध अवधि के शेष वर्षों में प्रतिवर्ष केन्द्र की उत्पादन क्षमता (1 करोड़ मत्स्य बीज फ्राई) का 25 प्रतिशत मत्स्य बीज मत्स्य विभाग को बिना किसी मूल्य के उपलब्ध करवाने होंगे अथवा उस संख्या के मत्स्य बीज की बाजार दर से राशि विभाग को जमा करवानी होगी।
10.3 सजावटी मछलियों का प्रजनन एवं पालन
उद्धेश्य
- ग्रामीण परिवारों को अतिरिक्त आय का स्त्रोत उपलब्ध करवाना।
- स्थानीय बाजार में सजावटी मछलियों की उपलब्धता बढ़ानां
- युवाओं में स्वरोजगार की संभावनाएँ बढ़ाना।
घरेलु इकाई की सामान्य आवश्यकता-
- घरेलु इकाई स्थापित करने के लिए अलग-अलग आकार के सीमेन्ट या फाईबर ग्लास की टंकियाँ, काँच के एक्वेरियम, पानी की सप्लाई के लिए ओवरहैड टैंक, आॅक्सीजन की सप्लाई के लिए पर्याप्त रबर ट्यूब, एरिएटर एवं वर्किंग शैड की आवश्यकता होती है।
घरेलु इकाई की आर्थिकी-
- 100 वर्गमीटर जगह एवं 60 घन मीटर पानी की गणना कुल लागत रुपये 1,02,500
- संचालन पर व्यय रुपये 45,500/-
- कुल संभावित प्रतिवर्ष शुद्ध आय रुपये 30,000/-
पात्रता-
- स्नातक डिग्रीधारी कोई भी व्यक्ति, या
- मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय, उदयपुर या महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय, उदयपुर से मत्स्य पालन में प्रशिक्षण प्राप्त, या
- मत्स्य बीज पालन एवं व्यवसाय में कम से कम 5 वर्ष का अनुभव।
- स्वयं सहायता समूह के मामले में ग्रुप लीडर उक्त पात्रता प्राप्त होना आवश्यक
वित्तीय सहायता-
- प्रति घरेलु इकाई लागत का 25 प्रतिशत या अधिकतम रूपये 25000/-
- महिला उद्यमी या महिलाओं के स्वंय सहायता समूह को अनुदान इकाई लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम रूपये 50000/-
10.4 मछली सह झींगा पालन का प्रदर्शन-
उद्धेश्य
- मत्स्य पालकों को झींगा पालन से होने वाले आर्थिक लाभ के बारे में जानकारी देना।
- राज्य में झींगा पालन को बढ़ावा देना।
- राज्य से झींगा के निर्यात को बढ़ावा देना।
आर्थिकी-
- तालाब को गहरा कराने में कुल लागत रूपये 9000/-
- एक हैक्टर जलक्षेत्र के लिए अनुमानित व्यय रूपये 52000/-
- कुल 3000 किलोग्राम मछली एवं 500 किलोग्राम झींगा उत्पादन से रूपये 140000/- की आय
- कुल प्रतिवर्ष संभावित शुद्ध आय 82000/- रूपये
वित्तीय सहायता-
- लाभार्थी को प्रति हैक्टर प्रदर्षन के लिए रूपये 30000/- तक अनुदान निम्नानुसार:-
- तालाब सुधार कार्य पूरा होने पर कुल लागत का 50 प्रतिशत या रूपये 5000/- अधिकतम अनुदान
- रूपये 25,000/- तक का झींगा बीज एवं पूरक आहार विभाग द्वारा उपलब्ध करवाया जाएगा।
पात्रता-
- आवेदनकर्ता मत्स्य पालन में प्रशिक्षण प्राप्त होना चाहिए।
- पिछले 3 वर्षों से मत्स्य पालन व्यवसाय से जुड़ा होना आवष्यक है।
- आवेदनकर्ता के पास स्वंय की जमीन पर निर्मित तालाब या दीर्घ अवघि के लिये लीज पर लिया हुआ तालाब होना आवष्यक है।
मत्स्य पालन से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य-
- राजस्थान इस दृष्टि से देश में 17वें स्थान पर है।
- नीली क्रांति मत्स्य उत्पादन से संबंधित है।
- मत्स्य पालन में प्रशिक्षण हेतु मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय उदयपुर में कार्यरत है।
- राजस्थान में वर्तमान में 15 मत्स्य पालक विकास अभिकरण कार्यरत है
- विभिन्न सर्वेक्षण और अनुसंधान कार्य हेतु मत्स्य सर्वेक्षण और अनुसंधान कार्यालय उदयपुर में स्थापित है।
- बांसवाड़ा जिले में मत्स्य पालन के इतिहास में पहली बार संवल प्रजाति की मछली को मोनोकल्चर द्वारा स्वयं की भूमि पर पौंड निर्माण कर पाला जा रहा है ,राजस्थान भर में इस तरह का कल्चर पहली बार हो रहा है
- राज्य का पहला मत्स्य अभ्यारण- राज्य का पहला मत्स्य अभ्यारण उदयपुर के “बड़ी तालाब” में बनाने की योजना है, जहां पर हिमालय क्षेत्र की नदियों में पाई जाने वाली दुर्लभ महाशीर मत्स्य प्रजातियों को संरक्षण दिया जाएगा।
- गंबूचिया मछलियों के पालन का मुख्य उद्देश्य राजस्थान में बढ़ रहे मलेरिया के प्रभाव पर नियंत्रण करना है।
- जल संसाधनों के आधार- पर राजस्थान देश में ग्यारहवें स्थान पर है।
- आदिवासी मछुआरों के उत्थान हेतु महत्वकांशी आजीविका मॉडल योजना राज्य के तीन जलाशयों जयसमंद (उदयपुर) माही बजाज सागर (बांसवाड़ा) और कडाणा बैंक वाटर( डूंगरपुर) में प्रारंभ की गई है
Aisi jaankari berojagaaro ke liye chahiye thanks
ReplyDeleteApka bahut bahut aabhar ji...
DeleteGreat Information. We need it.
ReplyDeleteThanks ji...
Deletesir gov survent bhi kar saktey hai kya
ReplyDeleteContact to Agriculture dept..
DeleteMujhe machli palan karna h
Deleteकृपया कृषि विभाग से सपर्क करें ...
Deleteश्री गंगानगर राजस्थान में अगर ये काम शुरू करना हो तो इसके लिए ट्रेनिंग कहा से मिलेगी और इसको और अच्छे से समजने के लिए किस से मिलना होगा श्री गंगानगर में इसका डिपार्टमेंट कहाँ पर है पीएलज़ेड बताए
ReplyDeleteकृपया कृषि विभाग से संपर्क करें ...
Delete