यहाँ नहीं खेलते हैं धुलेंडी बल्कि मनाते हैं डूडू महोत्सव
यूँ तो होली के दूसरे दिन प्रत्येक गांव शहर में धुलेंडी के का उत्सव मनाया जाता है किंतु राजस्थान में सीकर जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां होली के दूसरे दिन धुलंडी नहीं बल्कि डूडू महोत्सव मनाया जाता है। ये है राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना में स्थित गणेश्वर गांव, जहां पर होली के दूसरे दिन डूडू महोत्सव मनाया जाता है। यहां यह माना जाता है कि विक्रम संवत 1444 में बाबा रायसल ने उजड़े हुए गांव गणेश्वर के रूप में बसाया था। इसी दिन बाबा रायसल महाराज का राजतिलक हुआ था। डूडू महोत्सव के दौरान मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें 25 गांवों के लोग भाग लेते है तथा रायसल महाराज की पूजा करते हैंं। यह परम्परा तकरीबन 500 सालो से चली आ रही है। होली के दूसरे दिन सुबह से ही ग्रामीण नए कपड़े पहन कर हाथों में तलवार व झॉकियाँ सजाकर रायसल महाराज के मंदिर पहुंचते है और उनकी ग्राम देवता के रूप में पूजा करते हैं। इसके बाद दोपहर को डूडू मेले का आयोजन होता है, जिसमें निशानेबाजी, ऊंट दौड़, कुश्ती, दंगल जैसी कई प्रतियोगिताएं होती है।
पूर्णिमा को होती रायसल जी की विशेष पूजा-
पूर्णिमा के दिन ग्राम देवता रायसल महाराज के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है। उनका आर्शीवाद लेने दूर-दराज से भक्त यहां पहुंचते है। इसके अलावा मंदिर में गठजोड़े की जात भी जाती है। गांव में नई दुल्हन भी रायसल महाराज का आर्शीवाद लेने बाद ही घर में प्रवेश करती है। शाम को पवित्र गर्म पानी के झरने में स्नान करने के बाद होली का पर्व समाप्त होता है।
कड़ाके की सर्दी में भी बहता है गरम पानी का झरना-
गणेश्वर में कड़ाके की सर्दी में भी यहाँ के झरने का पानी गर्म रहता है। सर्दियों में चाहे तापमान कितना ही गिर जाए, इस झरने के पानी का तापमान औसतन 35 डिग्री के आसपास ही रहता है। कंपकंपाती सर्दी में लोगों को यह झरना खूब रास आता है। देशभर से पर्यटक यहां आते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस झरने के पानी में सल्फर की मात्रा ज्यादा होने के कारण यह गर्म रहता है। सल्फर पानी का तापमान बढ़ा देता है।
रायसल महाराज ने बसाया था गणेश्वर-
यहां यह मान्यता है कि विक्रम संवत 1444 में बाबा रायसल महाराज ने उजड़े हुए गांव को गणेश्वर के रूप में बसाया था। रायसल जी के राजतिलक दिवस को डूडू महोत्सव के रुप में मनाया जाता है।
रायसल महाराज का मंदिर पहाड़ी स्थित बना हुआ है। डूडू महोत्सव के दिन रात को भजनों का आयोजन होता है। ग्रामीणों की यह भी मान्यता है कि बाबा रायसल महाराज आज भी गालव गंगा तीर्थ धाम पर रात को स्नान करने घोड़ी पर सवार होकर आते है। कहा जाता है कि गालव ऋषि ने यहां तपस्या की थी अतः यहां स्थित झरने को गालव गंगा तथा कुंड को गालव गंगा तीर्थ धाम कहा जाता है।
प्राचीन सभ्यता के लिए है मशहूर है गणेश्वर-
राजस्थान के सीकर जिले में नीम का थाना तहसील मुख्यालय से 15 किमी दूर कांतली नदी के मुहाने पर स्थित गणेश्वर में ताम्रयुगीन सभ्यता के महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए है। यहाँ से प्रचुर मात्रा में जो ताम्र सामग्री प्राप्त हुई है। यह ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में से एक प्राचीनतम स्थल है। यहाँ के उत्खनन से ताँबे के हजारों हथियार और उपकरण मिले हैं। गणेश्वर सभ्यता स्थलों से प्राप्त सामग्री में कुल्हाड़ी, बाण, भाले, सुइयाँ, मछली पकड़ने के काँटे, चूड़ियाँ एवं विविध ताम्र आभूषण प्रमुख हैं। इन सामग्रियों में 99 प्रतिशत ताँबा है। यहां ताँबे के आयुधों के साथ लघु पाषाण उपकरण भी मिले हैं। यहाँ के मकान पत्थर के बनाए जाते थे। रतन चन्द्र अग्रवाल इस सभ्यता के खोजकर्ता थे। उन्होंने विजयकुमार के साथ इसका उत्खनन सन 1977-78 में किया था।
शीतला अष्टमी के दिन खेली जाती है यहाँ होली
गणेश्वर गांव में होली का त्योहार शीतला अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है। ग्रामीण रंग से खेलते हुए बाबा रायसल महाराज के मंदिर पहुंचते है।
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