हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था-
मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम जाता है।
हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह, बीकानेर के जोरावर सिंह, कोटा के दुर्जनसाल, जोधपुर के अभयसिंह, नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह, करौली के गोपालदास, किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।
हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी-
हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।
हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा, कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा।
वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध कार्यवाही आरम्भ की जाएगी जिसके लिए सभी राजा अपनी सेनाओं के साथ रामपुरा में एकत्रित होंगे और यदि कोई शासक किसी कारणवश उपस्थित होने में असमर्थ होगा तो वह अपने पुत्र अथवा भाई को भेजेगा।
मराठों के विरूद्ध कार्यवाही के लिए मुगल सम्राट की मदद लेने का प्रयास भी किया जाएगा ।
हुरडा सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य मराठा शक्ति पर नियंत्रण करना था। राजस्थान के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना के रूप में जाना जाने वाले हुरडा सम्मेलन का प्रमुख एजेंडा मराठों के कारण उत्पन्न स्थिति पर सभी शासकों द्वारा विचार-विमर्श करना और सामूहिक रूप से सर्वसम्मत निर्णय लेना था।
क्यों असफल रहा था हुरडा सम्मेलन-
खानवा युद्ध के बाद पहली बार राजस्थानी शासकों ने अपने शत्रु के विरूद्ध हुरडा सम्मेलन आयोजित करके एकीकृत होने तथा मोर्चा तैयार करने का प्रयास किया था। किन्तु यह राजस्थान का दुर्भाग्य ही था कि हुरडा सम्मेलन के निर्णय कार्यान्वित नहीं किए जा सके, क्योंकि तत्कालीन राजपूत शासकों का इतना घोर नैतिक पतन हो चुका था तथा वे ऐश्वर्य विलास में इतने डूबे हुए थे कि अपने आपसी जातीय झगडों को भूलकर अपने व्यक्तिगत स्वार्थ एवं लाभ को छोडना उनके लिए असम्भव था।
इतिहासकारों के अनुसार महाराणा जगतसिंह कुशल कूटनीतिज्ञ नहीं था। इस कारण प्रभावशाली और क्रियाशील नेतृत्व के अभाव में हुरडा सम्मेलन के निर्णय कार्यान्वित नहीं हो सके।
मगर दुर्भाग्य से हुरड़ा सम्मेलन के निर्णय क्रियान्वित होने से पहले ही मराठों को राजपूत शासकों द्वारा उनके विरुद्ध बनाई गई योजना का पता चल गया तो उन्होंने राजपूत राज्यों को भविष्य में स्वयं के लिए खतरा मानते हुए मालवा कर अधिकार करने के बाद राजस्थानी रियासतों में हस्तक्षेप बढ़ा दिया।
इस हस्तक्षेप के फलस्वरूप 1736 ई से 1738 ई के मध्य राजस्थान के अधिकांश राज्यों ने मराठों को चौथ देना स्वीकार कर लिया। इसकी शुरुआत जनवरी 1736 ई में पेशवा के उदयपुर पहुँचने पर तब हुई, जब उदयपुर के महाराणा ने डेढ़ लाख रूपये प्रतिवर्ष मराठाओं को देने का आश्वासन पेशवा बाजीराव प्रथम को दे दिया। इसके बाद जयपुर, मारवाड़, नागौर, कोटा आदि राज्यों ने भी मराठों को चौथ देना स्वीकार कर लिया।
हुरडा सम्मेलन का परिणाम - धौलपुर समझौता- 1741
1741 ई. में धौलपुर में पेशवा बालाजी बाजीराव और सवाई जयसिंह की भेंट हुई। 18 मई 1741 ई. तक पेशवा धौलपुर में ही रहा और जयसिंह से समझौते की बातचीत की, जिसकी मुख्य शर्ते इस प्रकार थी-
पेशवा को मालवा क्षेत्र की सूबेदारी इस शर्त पर दी जाएगी कि वे मुगल मराठा क्षेत्र में कोई उपद्रव ना करेगे।
पेशवा, 500 सैनिक बादशाह के दरबार में रखेगा तथा आवश्यकता होने पर बादशाह की मदद के लिए 4000 सैनिक अतिरिक्त देने होंगे जिसका सम्पूर्ण व्यय मुगल सरकार का होगा।
पेशवा को चम्बल के पूर्व व दक्षिण के जमींदारों से नजराना व पेशकश लेने का अधिकार होगा।
पेशवा मुगल सम्राट को पत्र लिखकर अपनी वफादारी और मुगल सेवा स्वीकार करने के बारे में उल्लेख करेंगे।
सिन्धिया और होल्कर यह लिखकर यह वादा करेंगे कि पेशवा जब तक मुगल सम्राट के प्रति वफादार रहेंगे, वे पेशवा का साथ देंगे लेकिन पेशवा द्वारा बेवफाई करने पर सिंधिया व होल्कर पेशवाओं का समर्थन नहीं करेंगे।
मराठा शासक भविष्य में मुगल बादशाह से किसी प्रकार की धनराशि की कोई मांग नहीं करेंगे।
Good
ReplyDeleteआपने हुरड़ा सम्मेलन के बारे में बहुत अच्छा बताया है
DeleteThanks....
Delete(h)
ReplyDeleteThanks....
DeleteBbut accha btaya sir
DeleteGood content
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद व आभार ...
Deleteऊनीयारा सम्मेलन कहां हूआ
ReplyDeleteSuper 😚
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