रामस्नेही सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत दरियाव जी - रामस्नेही सम्प्रदाय की प्राचीन शाखा ‘रेण’ के संस्थापक दरिया साहब की वाणी में कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं है जिसके आधार पर उनकी जन्म-तिथि या उपस्थिति काल का निर्णय किया जा सके। इस सम्बंध में हमें बहिर्साक्ष्यों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। दरिया साहब के प्रशिष्य और पूरणदास जी के शिष्य पदुमदास कृत ‘जन्म लीला’ के अनुसार- ''सतरा से के समत बरस तैंतीसा भारी। मास भादवा बद अष्टमी तिथ इदकारी।।'' अर्थात दरिया साहब का आविर्भाव भादों कृष्ण अष्टमी, वि.सं. 1733 को हुआ था। दरिया साहब के एक दूसरे शिष्य किशनदास जी के प्रपौत्र शिष्य मदाराम जी ने अपनी रचना दरिया साहब की परची में दरिया साहब का जन्म काल भाद्रपद कृष्ण आठ, संवत 1733 ही माना है- ''समत सत्रा सो जाणल्यो पुन तैतीसा सार। बदी भादवा अष्टमी जन दरिया अवतार।।'' सन्त जयराम दास जी ने भी “श्री दरियाव महाराज की लावणी” में भी इसी तिथि को माना है - ''सतरासें तेतीस का जन्म अष्टमी जाण। जन्म लियो दरियावजी सरे रोप्या भक्ति नो साण।।'' सन्त आत्...
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