आज आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा, शनिवार, 06 जून 2020 है। आज ज्येष्ठाभिषेक है। इसे केसर स्नान अथवा स्नान-यात्रा भी कहा जाता है। आप सभी को स्नान यात्रा पर्व की खूब खूब मंगल बधाई और शुभकामनाएं।
★☆★आज के उत्सव का भाव ★☆★
◆ श्रीनाथजी में प्रभु सेवा में चार यात्रा के मनोरथ होते हैं -
- अक्षय तृतीया को चन्दन यात्रा
- गंगा दशहरा को जल यात्रा
- आज के दिन स्नान यात्रा और
- रथ यात्रा
ज्येष्ठ नक्षत्र में पूर्णिमा होने से आज किया जाने वाला यह स्नान ज्येष्ठाभिषेक या स्नान यात्रा कहा जाता है। अर्थात आज के दिन ही ज्येष्ठाभिषेक स्नान होने एवं सवा लाख आम अरोगाए जाने का भाव ये हे कि यह स्नान ज्येष्ठ मास में चन्द्र राशि के ज्येष्ठा नक्षत्र में होता है और सामान्यतया यह ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को होता है। किंतु तिथि क्षय के कारण पूर्णिमा आज आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा को दोपहर 12.41 बजे तक है एवं ज्येष्ठा नक्षत्र दोपहर 3.13 बजे तक होने से ज्येष्ठाभिषेक आज आषाढ़ कृष्ण एकम को होगा।
◆ ऐसा भी कहा जाता है कि व्रज में पूरे ज्येष्ठ मास में आदि भक्तों के साथ जल विहार किया था तथा ज्येष्ठा पूनम को यमुना जी में स्नान किया था। श्री यमुना जी के पद, गुण-गान, जल-विहार के मनोरथ आदि हुए। इसके उद्यापन स्वरुप आज प्रभु को सवालक्ष आम अरोगा कर उक्त मनोरथ पूर्णता की गई थी।
◆ एक अन्य भाव यह है कि श्री नंदरायजी ने श्री ठाकुरजी का राज्याभिषेक कर उनको व्रज राजकुंवर से व्रजराज के पद पर आसीन किया था, इसी उपलक्ष्य में उसी भाव से यह उत्सव होता है तथा इसी भाव से स्नान-अभिषेक के समय वेदमन्त्रों तथा पुरुषसूक्त का वाचन किया जाता है। वेदोक्त उत्सव होने के कारण सर्वप्रथम शंख से स्नान कराया जाता है।
◆आज होगा सवा लाख आम धरने का मनोरथ-◆
प्रभु के राज्याभिषेक के इस आनंद के अवसर पर व्रजवासी ठाकुर जी को ऋतु के फल की भेंट के रूप में श्रेष्ठ आमों का भोग धराते हैं। इस भाव से आज श्रीनाथजी श्रीठाकुर जी को सवा लाख आम, जिसमें विशेषकर रत्नागिरी व केसर के आम होते हैं, अरोगाए जाते हैं।
ज्येष्ठाभिषेक स्नान से एक दिन पूर्व का सेवाक्रम-
ज्येष्ठाभिषेक स्नान यात्रा से एक दिन पूर्व प्रातः श्रृंगार के दर्शनों के पश्चात श्रीनाथ जी को ग्वाल भोग धरकर गोस्वामी बालकों के साथ श्रीनाथजी व श्री नवनीतप्रिया जी के मुखिया जी, भीतरिया, अन्य सेवक, वैष्णव जन श्रीनाथ जी मन्दिर में मोती महल के नीचे स्थित भीतरली बावड़ी पर स्नान यात्रा ज्येष्ठाभिषेक हेतु जल लेने जाते हैं। स्नान का जल भरने की इस प्रक्रिया में सोने एवं चांदी के पात्रों में स्नान यात्रा हेतु जल भर कर लाया जाता है और शयन के समय के इसका अधिवासन किया जाता है।
★★★ क्या होता है अधिवासन -★★★
अधिवासन का अर्थ है बालक की रक्षा हेतु देवत्व स्थापित करना।
पुष्टिमार्ग में सर्व वस्तु भावात्मक एवं स्वरूपात्मक होने से अधिवासन किया जाता है। स्नान यात्रा के जल की गागर का कुमकुम चंदन आदि से पूजन कर भोग धरकर उसमें देवत्व स्थापित कर बालक की रक्षा हेतु अधिवासन किया जाता है। इस प्रक्रिया में जल की गागर भरकर उसमें कदम्ब, कमल, रायबेली, मोगरा की कली, गुलाब, जूही, तुलसी, निवारा की कली आदि आठ प्रकार के पुष्पों चंदन, केसर, बरास, गुलाब जल, यमुना जल आदि पधराए जाते हैं।
अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है।
“श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्यामी l”
इस जल के 108 सोने के घड़ों से ज्येष्ठाभिषेक के दिन प्रातःकाल मंगला में ठाकुर जी का ज्येष्ठाभिषेक होता है तथा प्रभु को सवा लाख आमों का भोग लगाया जाता है ।
★★★ अधिवासन क्यों और किन किन भाव से- ★★★
★★★ क्या होता है अधिवासन -★★★
अधिवासन का अर्थ है बालक की रक्षा हेतु देवत्व स्थापित करना।
पुष्टिमार्ग में सर्व वस्तु भावात्मक एवं स्वरूपात्मक होने से अधिवासन किया जाता है। स्नान यात्रा के जल की गागर का कुमकुम चंदन आदि से पूजन कर भोग धरकर उसमें देवत्व स्थापित कर बालक की रक्षा हेतु अधिवासन किया जाता है। इस प्रक्रिया में जल की गागर भरकर उसमें कदम्ब, कमल, रायबेली, मोगरा की कली, गुलाब, जूही, तुलसी, निवारा की कली आदि आठ प्रकार के पुष्पों चंदन, केसर, बरास, गुलाब जल, यमुना जल आदि पधराए जाते हैं।
अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है।
“श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्यामी l”
इस जल के 108 सोने के घड़ों से ज्येष्ठाभिषेक के दिन प्रातःकाल मंगला में ठाकुर जी का ज्येष्ठाभिषेक होता है तथा प्रभु को सवा लाख आमों का भोग लगाया जाता है ।
★★★ अधिवासन क्यों और किन किन भाव से- ★★★
ज्येष्ठाभिषेक हेतु जल का अधिवासन |
अधिवासन वर्ष में छः होते हैं किन्तु नवीन वस्तु पर भी अधिवासन होता है- जैसे प्रथम नाव में प्रभु विराजे तब अधिवासन होता है। वैसे वर्ष में 7 बार अन्य धरण में अधिवासन होता है किन्तु श्रीजी में यह छः अधिवासन ही होते हैं।
1 वसंत में कामदेव का पूजन
2 डोल रक्षार्थ अधिवासन
3 ज्येष्ठाभिषेक जल का अधिवासन
4 अक्षय तृतीया में चन्दन का
5 हिंडोला का सेवा में निविघ्न हेतु
6 पवित्रा राखी
घरन में सातवाँ रथ का अधिवासन होता है।
ज्येष्ठाभिषेक में जिस जल से स्नान होता है उसको यमुना जी माना जाता है और उसका पूजन किया जाता है तथा जल को अभिमंत्रित कर अधिवासन होता है।
श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्ये।
उसके बाद चंदन, कंकू अक्षत व पुष्प से पूजन किया जाता है तथा भोग धर कर धूप दीप आरती की जाती है। यह माना जाता है कि यह रस दाता हो तथा नंदकुमार कन्हैया की रसलीला में निर्विघ्न सम्पन्नता देवें एवं प्रभुसुख पहुंचाएं।
पुष्टि संप्रदाय में स्नान यात्रा और ज्येष्ठाभिषेक अपनी समस्त दैवी शिक्षाओं के साथ जल शक्ति संबलन, संरक्षण और संवर्धन का संदेश वाहक का प्रेरक अवसर है। जल का अधिवासन कहिये अथवा उसे जन हितार्थ सुरक्षित, संशुद्ध करने का आग्रह प्राकृतिक तापों के हरण के लिये उसका संतुलित उपयोग, जल सदैव "सर्व दोष निवारक" कहा गया है। यमुना जल को इसीलिए पुष्टि पंथ में मनुष्य के "प्रतिबंधकारी और जनकृत दोषों" का निवारक कह उसे अधिवासित कर स्नान यात्रा और ज्येष्ठाभिषेक में शिरोधार्य किया गया है।
5 हिंडोला का सेवा में निविघ्न हेतु
6 पवित्रा राखी
घरन में सातवाँ रथ का अधिवासन होता है।
ज्येष्ठाभिषेक में जिस जल से स्नान होता है उसको यमुना जी माना जाता है और उसका पूजन किया जाता है तथा जल को अभिमंत्रित कर अधिवासन होता है।
★★★ अधिवासन क्यों-★★★
अमंगल निवर्त्यर्थ मंगल कामना हेतु अधिवासन होता है। इसमें वस्तु को देवत्व मान कर रक्षार्थ पूजन होता है। इसमें प्रथम संकल्प किया जाता है -श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्ये।
उसके बाद चंदन, कंकू अक्षत व पुष्प से पूजन किया जाता है तथा भोग धर कर धूप दीप आरती की जाती है। यह माना जाता है कि यह रस दाता हो तथा नंदकुमार कन्हैया की रसलीला में निर्विघ्न सम्पन्नता देवें एवं प्रभुसुख पहुंचाएं।
पुष्टि संप्रदाय में स्नान यात्रा और ज्येष्ठाभिषेक अपनी समस्त दैवी शिक्षाओं के साथ जल शक्ति संबलन, संरक्षण और संवर्धन का संदेश वाहक का प्रेरक अवसर है। जल का अधिवासन कहिये अथवा उसे जन हितार्थ सुरक्षित, संशुद्ध करने का आग्रह प्राकृतिक तापों के हरण के लिये उसका संतुलित उपयोग, जल सदैव "सर्व दोष निवारक" कहा गया है। यमुना जल को इसीलिए पुष्टि पंथ में मनुष्य के "प्रतिबंधकारी और जनकृत दोषों" का निवारक कह उसे अधिवासित कर स्नान यात्रा और ज्येष्ठाभिषेक में शिरोधार्य किया गया है।
★☆★ आज का विशिष्ट सेवाक्रम ★☆★
◆ विशेष पर्व होने के कारण आज श्रीनाथ जी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहलीज की पूजा की जाती है तथा उसे हल्दी से लीपा जाता है एवं द्वारों पर आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती है।
◆ आज झारीजी में सभी समय यमुना जल भरा जाता है।
◆ आज चारों समय अर्थात मंगला, राजभोग, संध्या और शयन की आरती थाली में की जाती है।
◆आज गेंद, दिवाला, चौगान आदि सभी खेल के साज चांदी के आते हैं।
◆ आज शंखनाद प्रातः चार बजे होते हैं। मंगला के दर्शन आरती के बाद खुलते हैं।
◆ आज मंगला दर्शन में श्रीजी को रोजाना की भांति श्वेत आड़बंद धराया जाता है।
◆ मंगला आरती के पश्चात् खुले दर्शनों में ही टेरा लिया जाता है तथा अनोसर के सभी आभरण व आड़बंद बड़े करके केशर की किनारी से सुसज्जित श्वेत धोती, गाती का पटका एवं स्वर्ण के सात आभरण धराए जाते हैं। तब तक मणिकोठा में जमुना जी के आगम के कीर्तन होते हैं।
◆ इस पश्चात् टेरा हटा लिया जाता है एवं प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक प्रारंभ हो जाता है।
◆ सर्वप्रथम ठाकुरजी को कुंकुम से तिलक व अक्षत अर्पित किए जाते है और तुलसी समर्पित की जाती है।
◆ इस अवसर पर उपस्थित पूज्य श्री तिलकायत अथवा गोस्वामी बालक या मुखियाजी स्नान का संकल्प लेते हैं एवं चांदी की चौकी पर चढ़कर मंत्रोच्चार, शंखनाद, झालर, घंटा आदि की मधुर ध्वनि के साथ विगत रात में अधिवासित किए गए केशर-बरास युक्त जल से ठाकुर जी का अभिषेक करते हैं।
◆ इस अभिषेक में सर्वप्रथम शंख से ठाकुरजी को स्नान कराया जाता है और इस दौरान स्वर्ण धर्मानुवाक् एवं पुरुषसूक्त उच्चारित किया जाता हैं। जब तक वेद पाठ होता है, तब तक स्नान शंख से जल छिटक कर ही कराया जाता है। सभी अन्य घरों में शंख से स्नान होता है, किन्तु श्रीजी में शंख से छिटक कर होता है। पुरुषसूक्त पाठ पूर्ण होने पर स्वर्ण कलश में जल भरकर 108 बार प्रभु को स्नान कराया जाता है। इस अवधि में ज्येष्ठाभिषेक स्नान के कीर्तन गाए जाते हैं।
स्नान का कीर्तन - (राग-बिलावल)
मंगल ज्येष्ठ जेष्ठा पून्यो करत स्नान गोवर्धनधारी ।
दधि और दूब मधु ले सखीरी केसरघट जल डारत प्यारी ।। 1 ।।
चोवा चन्दन मृगमद सौरभ सरस सुगंध कपूरन न्यारी ।
अरगजा अंग अंग प्रतिलेपन कालिंदी मध्य केलि विहारी ।। 2 ।।
सखियन यूथयूथ मिलि छिरकत गावत तान तरंगन भारी ।
मंगल ज्येष्ठ जेष्ठा पून्यो करत स्नान गोवर्धनधारी ।
दधि और दूब मधु ले सखीरी केसरघट जल डारत प्यारी ।। 1 ।।
चोवा चन्दन मृगमद सौरभ सरस सुगंध कपूरन न्यारी ।
अरगजा अंग अंग प्रतिलेपन कालिंदी मध्य केलि विहारी ।। 2 ।।
सखियन यूथयूथ मिलि छिरकत गावत तान तरंगन भारी ।
केशो किशोर सकल सुखदाता श्री वल्लभ नंदन की बलिहारी ।। 3 ।।
◆ जल छिटक कर स्नान करवाने का भाव -
जल छिटक कर स्नान करवाने का भाव यह है कि गोपियों ने प्रभु को जमुना जी में प्रेमभरी चितवन से देखते हुए हँस हँस कर उँगलियों से जल की बौछारे करते हुए स्नान करवाया था। विमानों में बैठ कर देवताओं ने पुष्प वृष्टि की थी। इस प्रकार ठाकुर जी ने मदमस्त हाथी की तरह यमुना जल में क्रीड़ा की थी, जिसका वर्णन सूरदास जी एवं परमानंद दास जी ने कीर्तनों में इस प्रकार किया है, जो राजभोग दर्शन में गाए जाते हैं-
राजभोग दर्शन कीर्तन – (राग : सारंग)
★कीर्तन - जमुनाजल गिरिधर करत विहार★
जमुनाजल गिरिधर करत विहार ।
आसपास युवति मिल छिरकत कमलमुख चार ॥ 1 ।।
काहुके कंचुकी बंद टूटे काहुके टूटे ऊर हार ।
काहुके वसन पलट मन मोहन काहु अंग न संभार ।। 2 ।।
काहुकी खुभी काहुकी नकवेसर काहुके बिथुरे वार ।
‘सूरदास’ प्रभु कहां लो वरनौ लीला अगम अपार ।। 3 ।।
★कीर्तन - करत गोपाल यमुनांजल क्रीडा ★
आसपास युवति मिल छिरकत कमलमुख चार ॥ 1 ।।
काहुके कंचुकी बंद टूटे काहुके टूटे ऊर हार ।
काहुके वसन पलट मन मोहन काहु अंग न संभार ।। 2 ।।
काहुकी खुभी काहुकी नकवेसर काहुके बिथुरे वार ।
‘सूरदास’ प्रभु कहां लो वरनौ लीला अगम अपार ।। 3 ।।
★कीर्तन - करत गोपाल यमुनांजल क्रीडा ★
करत गोपाल यमुनांजल क्रीडा ।।
सुरनर असुर थकित भये देखत, बिसर गई तन मन जिय पीडा ।।1।।
मृगमद तिलक कुंकुंमा चंदन, अगर कपुर बास बहु भुरकन ।।
कुचयुग मग्न रसिक नंद नंदन, कमल पाणि परस्पर छिरकन ।।2।।
निर्मल शरद कलाकृत शोभा, बरखत स्वाति बूंद जलमोती ।।
"परमानंद" कंचन मणि गोपी, मरकत मणि गोविंद मुखजोती ।।३।।
◆ दर्शन के बाद वैष्णवों को स्नान का जल वितरित किया जाता है।
◆ मंगला दर्शन पश्चात श्री ठाकुर जी को श्वेत मलमल का केशर के छापे वाला पिछोड़ा जाता है तथा श्रीमस्तक पर श्वेत कुल्हे के ऊपर तीन मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धराई जाती है।
◆ मंगला दर्शन के पश्चात मणिकोठा तथा डोल तिबारी को जल से खासा कर वहां सवा लाख आम का भोग रखा जाता है। इस कारण आज श्रृंगार और ग्वाल के दर्शन बाहर नहीं खोले जाते हैं।
◆ श्रीजी प्रभु वर्ष में विविध दिनों में चारों धाम के चारों स्वरूपों का आनंद प्रदान करते हैं। आज ज्येष्ठाभिषेक स्नान यात्रा में प्रभु श्रीनाथजी दक्षिण के धाम रामेश्वरम के भावरूप में वैष्णवों को दर्शन देते हैं, जिसमें प्रभु के जूड़े या जटा का दर्शन होता है। इसी प्रकार आगामी रथयात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ के रूप में प्रभु भक्तों पर आनंद वर्षा करेंगे।
★★★ आज की विशेष भोग सेवा ★★★
◆ गोपीवल्लभ अर्थात ग्वाल भोग में ही उत्सव भोग भी रखे जाते हैं, जिसमें खरबूजे के बीज तथा चिरोंजी के लड्डू मावे के पेड़ा-बरफी, दूध पूड़ी, बासोंदी, जीरा मिश्रित दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, घी में तला हुआ चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फलफूल, शीतल के दो हांडा, चार थाल अंकुरित मूंग आदि अरोगाए जाते हैं।
आज ठाकुरजी को अंकूरी अर्थात अंकुरित मूंग एवं फल में आम, जामुन का भोग अरोगाने का विशेष महत्व है। आज विशेष रूप से ठाकुरजी को छुकमां मूँग अर्थात घी में पके हुए व नमक आदि मसाले से युक्त मूँग अरोगाए जाते हैं। पुष्टिमार्ग में बीजके मोदक, अंकुरी तथा आम अरोगाने का भाव यह है कि जो भक्ति के बीज उत्पन्न होते हैं तथा वे अंकुरित होते हैं, उस भाव से अंकुरी एवं वे फलात्मक व शीतल रसात्मक होते हैं, उस भाव से आम अरोगाए जाते हैं। पुष्टिमार्ग में भक्ति के भावात्मक, संयोगात्मक एवं रसात्मकता होने का अनूठा क्रम है अर्थात पहले भाव उत्पन्न होते हैं, फिर प्रभु भक्ति संयोग होता है और फिर भाव का संयोग होने से भक्ति रस की उत्पत्ति होती है।
- आज की साज सेवा में श्रीनाथजी में श्वेत मलमल की पिछवाई धराई जाती है, जो केशर के छापा व केशर की किनार वाली होती है। आज गादी, तकिया तथा चरण चौकी पर सफेद बिछावट की जाती है।
- वस्त्र श्रृंगार में आज प्रभु को श्वेत मलमल के केशर के छापा वाला पिछोड़ा धराया जाता है।
- ठाकुर जी को आज वनमाला का अर्थात चरणारविन्द तक का उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है।
- सर्व आभरण हीरे और मोती के धराए जाते हैं। आज श्रीजी के श्रीमस्तक पर केसर की छाप वाली श्वेत रंग के कुल्हे के ऊपर सिर पैंच, एवं बाईं ओर शीशफूल धराए जाते हैं। आज तीन मोर पंख की चंद्रिका की जोड़ धराई जाती हैं। प्रभु जी के श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराए जाते हैं।
- श्रीकंठ में बघ्घी धराई जाती है व हांस, त्रवल नहीं धराए जाते। प्रभु को कली आदि सभी माला धराई जाती हैं। श्रीकंठ में तुलसी तथा सफ़ेद पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धराई जाती हैं।
- श्रीहस्त में चार कमल की कमल छड़ी, मोती के वेणु जी तथा दो वेत्र जी धराए जाते हैं।
- खेल के साज में पट ऊष्णकाल का व गोटी मोती की आती है।
- आज आरसी श्रृंगार में हरे मख़मल की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है।
- आज शयन में आम की मंडली आवे।
Good information for hindi gk question
ReplyDeleteThanks
DeleteGOOD
ReplyDeleteNICE POST
ReplyDeleteRAJASTHAN GK