नाथद्वारा में पखावज वादन की परम्परा नाथद्वारा के श्रीनाथजी के मंदिर में पखावज वादन की परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ की यह वादन प्रणाली परम्परागत रूप से कई वर्षों से चली आ रही है, जो अब तक भी मंदिर में विद्यमान है। बताया जाता है कि राजस्थान के केकटखेड़ा ग्राम में कुछ उपद्रव हो जाने से अव्यवस्था उत्पन्न हो गई थी, इस कारण वहाँ के कुछ लोग उस स्थान को छोड़कर जंगलों की ओर चले गए। इनमें नाथद्वारा की पखावज परम्परा से सम्बन्धित तीन आपस में भाई श्री तुलसीदास जी, श्री नरसिंह दास जी और श्री हालू जी का नाम विशेष रूप से आता है। ये तीनों भाई जंगलों में भ्रमण करते रहे तथा भक्ति में लीन हो गये। कहा जाता है कि भक्ति मार्ग से इन्हें संगीत की शक्ति प्राप्त हुई। इस तरह उन तीनों भाईयों का झुकाव संगीत की ओर हो गया। इनमें से दो भाईयों श्री तुलसीदास जी व नरसिंह दास जी की कोई संतान नहीं थी तथा तीसरे भाई हालू जी से ही आगे का वंश चला, जो आज भी पखावज परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। वह लौटकर आमेर आये और वहीं उन्होने निवास किया। श्री हालू जी के दो पुत्र हुए श्री स्वामी जी और श्री छबील दास जी। दूसरे
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