कोटा के कंसुआ शिव मंदिर को पुरातनकाल से ही कंसुआ तीर्थ कहा जाता है। इस प्राचीन शिवमंदिर का निर्माण विक्रमी संवत 795 यानि 738 ईस्वी में हुआ था। इस प्रकार यह मंदिर 1274 वर्ष पुराना है। कभी किसी कारण से यह मंदिर भग्न हो गया था तथा इसका शिखर टूट गया था। इसका पुनरुद्धार करके छावना (लेंटल) स्तर तक के मूल मंदिर को वही रखकर शिखर का पुनर्निर्माण कराया गया। इस मंदिर के दाहिनी दीवार पर एक शिलालेख लगा हुआ है, जिसमें इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख हुआ है। हिंदी के महाकवि जयशंकर प्रसाद ने भी अपने नाटक 'चंद्रगुप्त' की भूमिका में इस शिलालेख का उल्लेख किया है। इस शिलालेख को कूट लिपि में लिखे गए देश के श्रेष्ठतम शिलालेखों में से शीर्ष माना जाता है। शिलालेख में इस स्थान को प्राचीनतम धार्मिक तीर्थस्थल उल्लेखित करने के साथ ही लिखा हुआ है कि यह कण्व ऋषि का प्राचीन आश्रम है जहाँ शकुंतला का पालन पोषण हुआ था। यह माना जाता है कि इस स्थान की धार्मिक महत्ता को समझकर चित्तौड़गढ़ के राजा धवल मौर्य के सामंत शिवगण ने विक्रमी संवत 795 में यहाँ इस मंदिर का निर्माण कराया था। शिवगण एक ब्राह्मण था और उसने यहाँ भव्
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