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STATE TREE OF RAJASTHAN- KHEJADI राजस्थान का राज्य वृक्ष - खेजड़ी

राजस्थान के मरुस्थल क्षेत्रों में उगने वाली वनस्पतियों में खेजड़ी या शमी का वृक्ष एक अति महत्वपूर्ण वृक्ष है। यह राजस्थान का राज्य वृक्ष भी है। इसको 1983 में राज्य वृक्ष घोषित किया गया था। खेजड़ी को "रेगिस्तान का गौरव" व राजस्थान का कल्प तरु अथवा "थार का कल्पवृक्ष" भी कहा जा है। इस वृक्ष का व्यापारिक नाम 'कांडी' है। इसका वैज्ञानिक नाम "प्रोसेसिप-सिनेरेरिया" है ।  इसके अन्य नामों में घफ़, खेजड़ी , जांट/जांटी, सांगरी, जंड, कांडी, वण्णि, शमी, सुमरी आदि आते हैं। इसकी जड़े नत्रजन देती है। खेजड़ी से पत्ती, लकड़ी व सांगरी प्राप्त होती है। इसका फूल 'मींझर' तथा फल 'सांगरी' कहलाता है। सांगरी का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। इसकी पत्ती पशुओं (विशेषकर ऊँट, बकरी) के चारे के काम में आती है। लकड़ी जलाने व कच्चे मकान की छत बनाने के काम आती है। इसकी लकड़ी कृषि औजार बनाने के भी काम में आती है।  कन्हैयालाल सेठिया की राजस्थानी भाषा की थार रेगिस्तान में पाए जाने वाले वृक्ष खेजड़ी के सम्बन्ध में कविता 'मींझर' बहुत प्रसिद्

पर्यावरण के लिए बलिदान की याद में भरता है खेजड़ली का मेला

पर्यावरण संरक्षण के लिए पश्चिमी राजस्थान संपूर्ण विश्व में जाना जाता है। राजस्थानी की प्रसिद्ध कहावत "सर साठे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण" (अर्थात सिर कटवा कर वृक्षों की रक्षा हो सके, तो भी इसे सस्ता सौदा ही समझना चाहिए) को जोधपुर जिले का खेजड़ली गाँव के लोगों ने पूरी तरह से चरितार्थ किया था जहाँ संवत् 1787 की भादवा सुदी दशमी को खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा के लिए विश्नोई जाति के 363 व्यक्तियों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। वनों के संरक्षण तथा संवर्द्धन के लिए संत जांभोजी के अनुयायी विश्नोई समाज ने सदैव सामाजिक प्रतिबद्धता को उजागर किया है। जांभोजी ने संवत् 1542 की कार्तिक बदी अष्टमी को विश्नोई धर्म का प्रवर्तन किया तथा अपने अनुयायियों को "सबद वाणी" में उपदेश दिया कि वनों की रक्षा करें। उन्होंने अपने अनुयायियों से उनतीस (20+9) नियमों के पालन करने के लिए प्रेरित किया। बीस + नौ नियमों के पालन के उपदेश के कारण ही उनके द्वारा प्रवर्तित संप्रदाय को विश्नोई संप्रदाय कहा गया। इन नियमों में से एक नियम हरे वृक्ष को नहीं काटने का भी था। इस संप्रदाय के सैकड़ों लोगों द्वारा खेजड़ली