नाथद्वारा की सन्त "महात्मा भूरी बाई अलख" " महात्मा भूरी बाई अलख " का जन्म राजसमन्द जिले के लावा सरदारगढ़ गाँव में संवत् 1949 में आषाढ़ शुक्ला 14 को एक सुथार परिवार में हुआ। माता का नाम केसर बाई और पिता का नाम रूपा जी सुथार था। तेरह वर्ष की अल्पायु में भूरी बाई का विवाह नाथद्वारा के एक अधेड़ आयु के धनी चित्रकार फतहलाल जी सुथार के साथ कर दिया गया। इस बेमेल विवाह के नतीजे अच्छे नहीं हुए। कालान्तर में पति का बीमारी से देहान्त हो गया तो भूरीबाई के गृहस्थ जीवन में एक भूचाल आ गया और उनका मन धीरे - धीरे संसार से विरक्त हो कर प्रभु भक्ति की ओर अग्रसर हो गया। साधना और भक्ति के क्षेत्र में उनमें एक ऐसी तीव्र लगन उत्पन्न हो गई कि कई धर्मपरायण लोग उनसे प्रभावित हुए तथा उनके पास सत्संग करने आने लगे। गृहस्थ जीवन में रह कर सभी कर्तव्यों का पालन करते हुए भी दार्शनिक विचारों व भक्ति भावना के कारण वे महात्मा भूरीबाई के नाम से
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