राजस्थान के प्राचीन लोक जीवन में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए है जिन्होंने लोक कल्याण के लिए अपना जीवन तक दाँव लगा दिया और देवता के रूप में सदा के लिए अमर हो गए। इन लोक देवताओं में कुछ को पीर की संज्ञा दी गई है। एक जनश्रुति के अनुसार राजस्थान में पांच पीर हुए हैं, जिनके नाम पाबूजी, हड़बूजी, रामदेवजी, मंगलिया जी और मेहा जी है। इस जनश्रुति का दोहा इस प्रकार है- पाबू, हड़बू, रामदे, मांगलिया, मेहा। पांचो पीर पधारज्यों, गोगाजी जेहा ॥ इन्हें 'पंच पीर' भी कहा जाता है। लोक देवता पाबूजी का जन्म संवत 1313 (1239 ई.) में जोधपुर जिले में फलौदी के पास कोलूमंड गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम धाँधल जी राठौड़ था जो मारवाड़ के राव आसथान के पुत्र थे। वे एक दुर्ग के दुर्गपति थे। पाबूजी का विवाह अमरकोट के सोढ़ा राणा सूरजमल की पुत्री के साथ तय हुआ। वीर पाबूजी राठौड़ ने अपने विवाह में फेरे लेते हुए सुना कि उनके बहनोई श्री जींदराव खींची एक अबला स्त्री देवल चारणी की गाएँ हरण कर ले जा रहे हैं। उन्होँने उस महिला को उसकी गायों की रक्षा का वचन दे रखा था। गायों के अपहरण की बात सुनते ही वे आधे
राजस्थान की कला, संस्कृति, इतिहास, भूगोल व समसामयिक तथ्यों के विविध रंगों से युक्त प्रामाणिक एवं मूलभूत जानकारियों की वेब पत्रिका "The web magazine of various colours of authentic and basic information of Rajasthan's Art, Culture, History, Geography and Current affairs