नाथद्वारा में प्रतिवर्ष धुलंडी की शाम को प्राचीन परंपरा के तहत स्थानीय गुर्जरपुरा मोहल्ले की बादशाह गली से ठाट-बाट से बादशाह की सवारी निकाली जाती है। इसमें एक व्यक्ति बादशाह बनकर पालकी में बैठता है। इस सवारी मे बादशाह बादशाही दाढ़ी मूंछ लगाकर जामा पायजामा की मुगली पोशाक पहनते हैं तथा आंखों में काजल लगाकर दोनों हाथों में श्रीनाथजीकी छवि लेकर पालकी पर सवार होते हैं। सवारी की अगवानी आगे आगे नाथद्वारा के श्रीनाथजी के मंदिर मंडल का बैंड के बांसुरी वादन करते हुए चलता है। गुर्जरपुरा से सवारी सीधे बड़ा बाजार होती हुई आगे बढ़ती है तब बृजवासी लोग बादशाह पर गालियों की बौछारें करते हैं। सवारी मंदिर की परिक्रमा लगाती हुई श्रीनाथ जी के मंदिर पहुंचती, जहां पर बादशाह ने अपनी दाढ़ी से सूरजपोल की सीढिय़ां साफ कर बरसाें से चली रही परंपरा का निर्वाह करते हैं। इसके बाद मंदिर के परछने विभाग के मुखिया ने बादशाह को पैरावणी भेंट करते हैं। बृजवासी लोग मंदिर में भी बादशाह को जमकर गालियां सुनाते हैं तथा रसिया गान कर माहौल को बृज-सा बना देते हैं। नाथद्वारा में ये मान्यता है कि औरंगजे
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