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Showing posts with the label राजस्थान का इतिहास

Harijan Sevak Sangh in Rajasthan राजस्थान में हरिजन सेवक संघ

राजस्थान में हरिजन सेवक संघ (Harijan Sevak Sangh in Rajasthan)- पृष्ठभूमि- भारत में स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी और डॉ भीमराव अम्बेडकर के बीच 25 सितम्बर 1932 को यरवदा जेल में पूना पैक्ट का गांधी सहित देश के हिन्दू नेताओं पर गहरा प्रभाव पड़ा।  पूना पैक्ट के पश्चात गांधी एवं कांग्रेस का ध्यान अछूतों की ओर हुआ एवं उन्होंने अनुभव किया गया कि दलितों एवं हरिजनों की समस्याओं का हल करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय संगठन होना चाहिए।  तब 30 सितम्बर 1932 को हरिजन सेवक संघ की स्थापना एक अखिल भारतीय संगठन के रूप में की गई। हरिजन सेवक संघ एक अखिल भारतीय संगठन था, जिसका निर्माण गांधीजी ने हिन्दू समाज से अस्पर्श्यता मिटाने के लक्ष्य से किया था।  इस संघ की कल्पना तत्त्व 'प्रायश्चित करने वालों' के एक समाज के रूप में की गई थी, जिससे हिन्दू समाज तथाकथित अस्पर्श्य के प्रति किए गए अपने पाप का प्रायश्चित कर सके। इसके पदाधिकारियों का कार्य विशेषाधिकार प्राप्त करने के बजाय ऋण चुकाना था, इसलिए इसकी कार्यकारिणी में वे ही लोग रखे गये, जिन्हें प्रायश्चित करना था।  पूर्व में

Adhai din ka Jhonpra, Ajmer अढाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर

  Adhai din ka Jhonpra, Ajmer अढाई दिन का झोंपड़ा, अजमेर अढाई दिन का झोंपड़ा एक ऐतिहासिक ईमारत है, जो राजस्थान के शहर अजमेर में स्थित है। यह अजमेर में ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से आगे कुछ ही दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि यह ऐतिहासिक इमारत चौहान सम्राट बीसलदेव ने सन 1153 में बनवाई थी। यह मूलत: संस्कृत विद्यालय (सरस्वती कंठाभरण महाविद्यालय) थी, जिसे बाद में शाहबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी के आदेश पर सन 1191 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मस्जिद का रूप देना प्रारंभ किया जो 1199 में पूर्ण हुई। यह भी कहा जाता है कि 11वीं सदी के अंतिम दशक में मुहम्मद गोरी ने तराईन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर दिया और उसकी फौजों ने अजमेर में प्रवेश के लिए कूच किया तो गोरी ने वहां नमाज अदा करने के लिए मस्जिद बनाने की इच्छा प्रकट की और इसके लिए 60 घंटे का समय दिया। अतः इस मस्जिद को बनवाने में सिर्फ़ ढाई दिन ही लगे, इसलिए इसे 'अढाई दिन का झोंपड़ा' कहा जाता है, किन्तु यह सत्य प्रतीत नहीं होता है। इसके बारे एक अन्य प्रचलित बात यह है कि यहाँ हर साल अढाई दिन का मेला लगता है, जिसके कारण इसे अढा

केन्द्रीय संस्कृति मंत्री ने देश के वरिष्ठ पुरातत्वविदों प्रो. बी .बी. लाल एवं डॉ. आर.एस. बिष्ट के साथ की भेंट

केन्द्रीय संस्कृति मंत्री ने देश के वरिष्ठ पुरातत्वविदों प्रो. बी .बी. लाल एवं डॉ. आर.एस. बिष्ट के साथ की भेंट केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने आज देश के दो वरिष्ठ पुरातत्वविदों प्रो. बी .बी.लाल एवं डॉ. आर.एस. बिष्ट के साथ उनकेघर जाकर भेंट की और दोनों वरिष्ठ पुरातत्वविदों को पुरातत्व के क्षेत्र में दिए गए उनके योगदान के लिए सराहा।  प्रो. बी बी लाल, पूर्व महानिदेशक (1968-1972) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित (2000) हैं और डॉ. आर.एस. बिष्ट, पूर्व संयुक्त महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और पद्म श्री अवार्डी (2013) हैं । प्रो. लाल वर्तमान में 99 वर्ष के हैं और एएसआई के सबसे वरिष्ठ पुरातत्वविद् हैं। उन्होंने भारत सरकार, भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, शिमला में विभिन्न वरिष्ठ क्षमताओं में सेवा की है; साथ ही ग्वालियर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के सदस्य भी रहे हैं।    केन्द्रीय मंत्री ने प्रो. बी बी लाल के साथ कालीबंगन में उनके ऊपर उपयुक्त रूप से डिजाइन किए गए कैनोपी के रूप में खुदाई किए गए अवशेषों के संरक्

Rajasthan Sewa Sangh - राजस्थान सेवा संघ

राजस्थान सेवा संघ - राजस्थान सेवा संघ के संस्थापक स्थापना वर्धा में - विजय सिंह पथिक ने रामनारायण चौधरी व हरिभाई किंकर के साथ मिलकर 1919 ई. में वर्धा में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की।  1919 में अमृतसर कांग्रेस में पथिक जी के प्रयत्न से बाल गंगाधर तिलक ने बिजोलिया सम्बन्धी प्रस्ताव रखा। पथिक जी ने बम्बई जाकर किसानों की करुण कथा गाँधी जी को सुनाई। गाँधी जी ने वचन दिया कि यदि मेवाड़ सरकार ने न्याय नहीं किया तो वह स्वयं बिजोलिया सत्याग्रह का संचालन करेंगे। राजस्थान सेवा संघ का अजमेर स्थानान्तरण-  महात्मा गाँधी ने किसानों की शिकायत दूर करने के लिए एक पत्र महाराणा को लिखा, पर कोई हल नहीं निकला। पथिक जी ने बम्बई यात्रा के समय गाँधी जी की पहल पर यह निश्चय किया गया कि वर्धा से 'राजस्थान केसरी' नामक समाचार पत्र निकाला जाये। 'राजस्थान केसरी' पत्र सारे देश में लोकप्रिय हो गया, परन्तु पथिक जी और जमनालाल बजाज की विचारधाराओं ने मेल नहीं खाया और वे वर्धा छोड़कर अजमेर आ गए। तब 1920 ई. में इसका कार्यालय अजमेर स्थानान्तरित किया गया। राजस्थान सेवा संघ का मु

राजस्थान का प्रसिद्ध हुरडा सम्मेलन - 17 जुलाई 1734

हुरडा सम्मेलन कब आयोजित हुआ था- मराठा शक्ति पर अंकुश लगाने तथा राजपूताना पर मराठों के संभावित आक्रमण को रोकने के लिए जयपुर के सवाई जयसिंह के प्रयासों से 17 जुलाई 1734 ई. को हुरडा (भीलवाडा) नामक स्थान पर राजपूताना के शासकों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे इतिहास में हुरडा सम्मेलन के नाम  जाता है।   हुरडा सम्मेलन जयपुर के सवाई जयसिंह , बीकानेर के जोरावर सिंह , कोटा के दुर्जनसाल , जोधपुर के अभयसिंह , नागौर के बख्तसिंह, बूंदी के दलेलसिंह , करौली के गोपालदास , किशनगढ के राजसिंह के अलावा के अतिरिक्त मध्य भारत के राज्यों रतलाम, शिवपुरी, इडर, गौड़ एवं अन्य राजपूत राजाओं ने भाग लिया था।   हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता किसने की थी- हुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की।     हुरडा सम्मेलन में एक प्रतिज्ञापत्र (अहदनामा) तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा , कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा ।   वर्षा ऋतु के बाद मराठों के विरूद्ध क

Historical Jodhpur District of Rajasthan - राजस्थान का ऐतिहासिक जोधपुर जिला

भौगोलिक स्थिति- जोधपुर जिला राजस्थान के पश्चिमी भाग में 26 ० 0'' से 27 ० 37'' उत्तरी अक्षांश एवं 72 ० 55'' से 73 ० 52'' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। जिला 197 किमी. उत्तर से दक्षिण तथा 208 किमी. पूर्व से पश्चिम की ओर फैला हुआ है। जिले का क्षेत्रफल 22850 वर्ग किमी. है। यहां छः अन्य जिलों की सीमाएं इससे लगती है। इसके उत्तर में बीकानेर व जैसलमेर, दक्षिण में बाड़मेर, जालोर व पाली और पूर्व में नागौर व पाली जिले हैं। पश्चिम में इसकी सीमा जैसलमेर जिले से होती हुई पाकिस्तान की सीमा तक जाती है। जोधपुर जिला समुद्र तल से 250-300 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। स्थलाकृति यह जिला राजस्थान राज्य के शुष्क क्षेत्र में आता है। यह राज्य के शुष्क क्षेत्र के कुल क्षेत्रफल का 11.60 प्रतिशत है। भारत में थार रेगिस्तान के कुछ क्षेत्र इस जिले के भीतर आते हैं। इसके इलाके का सामान्य ढलान पश्चिम की ओर है। गर्मियों में अत्यधिक गर्मी और सर्दियों में अत्यधिक ठंड रेगिस्तान की विशेषता है और जोधपुर भी इसका अपवाद नहीं है। जिले में कोई बारहमासी नदी नहीं है। हालाँकि ल