गोविन्द गिरि का भगत आंदोलन- राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, दक्षिणी मेवाड़, सिरोही तथा गुजरात व मालवा के मध्य पर्वतीय अंचलों की आबादी प्रमुखतया भीलों और मीणा आदिवासियों की है। इन आदिवासियों में चेतना जागृत करने एवं उन्हें संगठित करने का बीड़ा डूंगरपुर से 23 मील दूर बांसिया गाँव में 20 दिसम्बर 1858 को जन्मे बणजारा जाति के गोविंद गुरु ने उठाया था। बताया जाता है कि स्वामी दयानन्द सरस्वती के उदयपुर प्रवास के दौरान गोविन्द गुरू उनके सानिध्य में रहे थे तथा उनसे प्रेरित होकर गोविन्द गुरू ने अपना सम्पूर्ण जीवन सामाजिक कुरीतियों, दमन व शोषण से जूझ रहे जनजातीय समाज को उबारने में लगाया था। गोविन्द गुरु ने आदिवासियों को संगठित करने के लिए 1883 में संप-सभा की स्थापना की जिसका प्रथम अधिवेशन 1903 में हुआ । गोविन्द गुरु के अनुयायियों को भगत कहा जाने लगा , इसीलिए इसे भगत आन्दोलन कहते हैं। संप का अर्थ है एकजुटता, प्रेम और भाईचारा। संप सभा का मुख्य उद्देश्य समाज सुधार था। उनकी शिक्षाएं थी - रोजाना स्नानादि करो, यज्ञ एवं हवन करो, शराब मत पीओ, मांस मत खाओ, चोरी लूटपाट मत करो, खेती
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