मध्यकालीन राजस्थान में जल स्थापत्य ( Water Architecture in the Medieval Rajasthan) - राजस्थान के अधिकांश भाग में मरुस्थल होने के कारण यहां जल को संरक्षित रखने के परंपरा रही है। यहां वर्षा के पानी को इस तरह के रखा जाता है कि अगली वर्षा तक उससे आवश्यकता पूरी हो सकें- मनुष्य एवं पशुओं के पीने नहाने होने के लिए पानी मिले और खेतों में सिंचाई भी हो सके। प्रदेश में पानी का इतना महत्त्व था कि बहुत से मध्यकालीन स्थानों के नाम भी कुओं, तालाबों और बावडियों के नाम से जुड़े हुए थे, जैसे किरात- कूप के नाम पर किराडू-बाड़मेर , पलाश कूपिका के नाम पर फलासिया-मेवाड़ , प्रहलाद कूप के नाम पर पल्लू -बीकानेर सरोवरों के नाम पर कोडमदेसर, राजलदेसर आदि तालाब के नाम पर नागदा (नाग हद) । राजस्थान में पानी को संजोने, इक्कट्ठा रखने के लिए स्थापत्य निर्माण की आवश्यकता हुई एवं इसके लिए यहां सुंदर कुएं, कुंड, टाँके तथा बावड़ियां निर्मित की गई। 1. कुएँ - कुओं निर्माण करना आसान था एवं लोग स्वयं बना लेते थे। जब पानी निकल आता था तो लोग उसके चारों पक्की दीवारें बना लेते थे एवं लाव-चड़स आदि से पानी निकाल लेते थ
राजस्थान की कला, संस्कृति, इतिहास, भूगोल व समसामयिक तथ्यों के विविध रंगों से युक्त प्रामाणिक एवं मूलभूत जानकारियों की वेब पत्रिका "The web magazine of various colours of authentic and basic information of Rajasthan's Art, Culture, History, Geography and Current affairs