राजस्थान की मालव गणजाति का ऐतिहासिक विवरण - नान्दसा यूप मालव जाति ने प्राचीन भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस जाति का मूल निवास स्थान पंजाब था, वहाँ से इसका प्रसार उत्तरी भारत, राजस्थान, मध्य भारत, लाट देश, वर्तमान में भड़ौच, कच्छ, बड़नगर तथा अहमदाबाद में हुआ और अंत में मालवा में इस जाति ने अपने राज्य की स्थापना की। मालवों का सर्वप्रथम उल्लेख पाणिनि की अष्टाध्यायी में मिलता है। मालवों ने अपने गणस्वरुप को 600 ई.पू. से 400 ई. तक बनाए रखा। समुद्रगुप्त द्वारा पराजित मालवों ने अब गणशासन पद्दति को त्याग कर एकतंत्र को स्वीकार कर लिया। उन्होंने दशपुर- मध्यमिका (चितौड़) क्षेत्र में औलिकर वंश के नाम से शासन किया। पाणिनि के अनुसार मालव और क्षुद्रक वाहिक देश के दो प्रसिद्ध गणराज्य थे। दोनों की राजनीतिक सत्ता और पृथक भौगोलिक स्थिति थी। युद्ध के समय ये दोनों गण मिलकर साथ लड़ते थे। इस संयुक्त सेना की संज्ञा 'क्षौद्रक-मालवी' थी । सिकंदर के आक्रमण के समय मालव-क्षुद्रक गणों की सेना को साथ-साथ लडना था परन्तु सेनापति के चुनाव को लेकर उनमें
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