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Showing posts with the label राजस्थान के तीर्थ स्थल

Statue of belief 351ft.(world's tallest lord shiva statue ) nathdwara rajsamand mewar rajasthan

भगवान शिव के भक्तों के लिए दुनिया की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा को पूरा तैयार होने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता है, इसके निर्माता ने बताया कि यह प्रतिमा 351 फीट ऊंची है, और यह राजस्थान के पुष्टिमार्ग के प्रथम पीठ ऐतिहासिक शहर नाथद्वारा में स्थित है। जल्द ही इसका उद्घाटन किया जाना था, किन्तु निर्माण अपेक्षा से अधिक लंबा हो गया है, और उद्घाटन की तारीख स्थगित हो गई। कथित तौर पर, प्रतिमा का निर्माण अगस्त तक पूरा होने वाला है। यह नाथद्वारा नगर जहाँ विश्व प्रसिद्ध श्रीनाथजी मंदिर है, में गणेश टेकरी पर बनाई जा रही है। इस प्रतिष्ठित संरचना को ''स्टैच्यू ऑफ बिलीफ़'' का नाम दिया गया है। इसका निर्माण 2,500 टन परिष्कृत स्टील के साथ किया गया, जो उच्च गुणवत्ता वाले तांबे और जस्ता के पेडस्टल से युक्त है। प्रतिमा को विभिन्न स्तरों पर तीन दीर्घाओं से सुसज्जित किया गया है; जहाँ आगंतुक क्रमशः 20 फीट, 110 फीट और 270 फीट की ऊंचाई पर पहुंच सकते हैं। भगवान शिव के त्रिशूल का निर्माण 315 फीट की ऊंचाई पर किया गया है। गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के बाद भारत में दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा होगी, जिसे

Gopashtami of Nathdwara नाथद्वारा की गोपाष्टमी

नाथद्वारा की गोपाष्टमी - कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी  में पूरे देश भर में मनाया जाता है। पुष्टिमार्ग में गौ सेवा का विशेष महत्त्व है। यह ऐसा संप्रदाय है, जिसमें गौपालन, गौ-क्रीड़न, गौ-संवर्धन आदि कार्य अतिविशिष्ट तरीके से किये जाते हैं। इसमें गौ-सेवा प्रभु की सेवा की भांति की जाती है। इसलिए महाप्रभु वल्लभाचार्य जी द्वारा प्रवर्तित पुष्टिमार्गीय संप्रदाय की प्रथम पीठ नाथद्वारा में भी यह गोपाष्टमी उत्सव अति विशिष्ठ तरीके से धूमधाम से मनाया जाता है। श्रीनाथजी के दर्शनों में आज भक्तजन गोपाल प्रभु के ''प्रथम गौचारण'' के मनमोहक स्वरूप को ह्रदय में आत्मसात करते हुए गोपाष्टमी के दर्शन का आनंद लेते हैं।  गोपाष्टमी की कथा एक पौराणिक कथा अनुसार एकबार बालक श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की थी और कहा था कि माँ मुझे गाय चराने अनुमति देवें। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा कार्तिक शुक्ल अष्टमी का अच्छा मुहूर्त देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने की अनुमति प्रदान की गई। गोपाष्टमी के शुभ दिन को बालक कृष्ण ने गायों की पूजा उपरां

जाने राजस्थान में कहाँ नहीं खेलते हैं धुलेंडी बल्कि मनाया जाता है डूडू महोत्सव

यहाँ नहीं खेलते हैं धुलेंडी बल्कि मनाते हैं डूडू महोत्सव यूँ तो होली के दूसरे दिन प्रत्येक गांव शहर में धुलेंडी के का उत्सव मनाया जाता है किंतु राजस्थान में सीकर जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां होली के दूसरे दिन धुलंडी नहीं बल्कि डूडू महोत्सव मनाया जाता है। ये है राजस्थान के सीकर जिले के नीमकाथाना में स्थित गणेश्वर गांव , जहां पर होली के दूसरे दिन डूडू महोत्सव मनाया जाता है। यहां यह माना जाता है कि विक्रम संवत 1444 में बाबा रायसल ने उजड़े हुए गांव गणेश्वर के रूप में बसाया था। इसी दिन बाबा रायसल महाराज का राजतिलक हुआ था। डूडू महोत्सव के दौरान मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें 25 गांवों के लोग भाग लेते है तथा रायसल महाराज की पूजा करते हैंं। यह परम्परा तकरीबन 500 सालो से चली आ रही है। होली के दूसरे दिन सुबह से ही ग्रामीण नए कपड़े पहन कर हाथों में तलवार व झॉकियाँ सजाकर रायसल महाराज के मंदिर पहुंचते है और उनकी ग्राम देवता के रूप में पूजा करते हैं। इसके बाद दोपहर को डूडू मेले का आयोजन होता है, जिसमें निशानेबाजी, ऊंट दौड़, कुश्ती, दंगल जैसी कई प्रतियोगिताएं होती है। पूर्णि

आस्था के धाम बेणेश्वर का मेला BENESHWAR FAIR RAJASTHAN

अपनी लोक संस्कृति एवं परम्पराओं के लिए सुविख्यात राजस्थान के दक्षिण में स्थित जनजाति बहुल जिला डूंगरपुर अब जनजाति महाकुंभ कहे जाने वाले बेणेश्वर मेले से भी विश्व पर्यटन मानचित्र पर पहचान बनाने लगा है। साबला के निकट डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा जिले की सीमा रेखा पर अवस्थित वागड प्रयाग के नाम से सुविख्यात आस्था, तप एवं श्रद्धा के प्रतीक बेणेश्वर धाम पर प्रतिवर्ष बांसती बयार के बीच आध्यात्मिक एवं लोक संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है।  सोम-माही-जाखम के मुहाने पर अवस्थित ‘बेणेका टापू’ लोक संत मावजी महाराज की तपोस्थली है। श्रद्धा व संस्कृति के इस संगम मेले में राजस्थान के साथ ही पूरे देशभर व पड़ौसी राज्यों गुजरात, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र से भी लाखों श्रद्धालु पहुंचते है। वैसे तो यह मेला ध्वजा चढ़ने के साथ ही प्रारंभ हो जाता है परंतु ग्यारस से माघ पूर्णिमा तक लगने वाले मुख्य मेले में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बहुत अधिक होती है। मेले में तीन दिन तक जिला प्रशासन, जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग एवं पर्यटन विभाग के द्वारा संयुक्त तत्वाधान में विभिन्न सांस्कृतिक एवं खेलकूद कार

Ram Devra & Baba Ramdev Ji of Rajasthan

Baba Ramdev is a folk deity of Rajasthan. His birth anniversary is celebrated as Baba Ramdev Jayanti. It is the second day of Shukla Paksha of Bhadrapada month. King Ajmal (Ajaishinh) married Queen Minaldevi, the daughter of Pamji Bhati of Chhahan Baru village. For several years, the couple remained childless. The king went to Dwaraka and pleaded with Krishna about his wish to have child like him. They had two sons, Viramdev and the younger Ramdev. Ramdev was born on Bhadarva Shukla dooj in V.S. 1409 at Ramderiya Undu in Kashmir in Barmer district. Baba Ramdev was a very hardworking king who dedicated his life to the people of his kingdom. He took up many welfare measures for his people. He strived hard for the upliftment of the poor and downtrodden people. He preached about equality. Though he was a reviver of Hinduism, he treated people of all religions equally. He took Samadhi at the age of 33 on Bhadrapada Shukla Ekadashi. Ramdevra lies on route of

श्री घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग शिवालय शिवाड़

सवाईमाधोपुर जिले के शिवाड़ नामक स्थान पर स्थित शिवालय को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक श्री घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को भगवान शंकर के निवास के रूप में द्धादशवां एवं अंतिम ज्योतिर्लिंग मानने पर हालाँकि कुछ विवाद है किन्तु यहाँ के लोगों के पास इसके पक्ष में कई प्रमाण भी है जिनसे वे इसे 12 ज्योतिर्लिंग सिद्ध करते हैं। यह शिवालय राज्य के सवाई माधोपुर जिले के ग्राम शिवाड़ में देवगिरि पहाड़ के अंचल में स्थित है, जो जयपुर से मात्र 100 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे सं.12 पर बरोनी से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। यह जयपुर कोटा रेलमार्ग पर ईसरदा रेल्वे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है।  घुश्मेश्वर द्धादशवां ज्योतिर्लिंग का यह पवित्र मंदिर कई वर्षो पुराना है। वर्षभर में लाखों लोग यहाँ आते है। देवगिरी पर्वत पर बना घुश्मेश्वर उद्यान रात के समय लाइटिंग में अदभुत छटा बिखेरता हैं। श्रद्धालुओं की मण्डली शिवरात्रि  [फाल्गुन महीने (फरवरी- मार्च)] एवं श्रावण मास के दौरान बहुत ही रंगीन नजर आती है। भगवान शिव के बहारवें (द्धादशवें) ज्योतिर्लिंग के स्थान के बारे में पिछले वर्

कहाँ पर है राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल 'लोहार्गल धाम' - लोहार्गल तीर्थ स्थान

लोहार्गल किस जिले में है? राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल 'लोहार्गल (Lohargal)' शेखावाटी क्षेत्र में झुन्झुनू जिले में उदयपुरवाटी कस्बे से करीब दस किमी की दूरी पर आड़ावल पर्वत की घाटी में स्थित है। नवलगढ़ तहसील में स्थित इस तीर्थ 'लोहार्गल जी' को स्थानीय अपभ्रंश भाषा में लुहागरजी Luhagar Ji कहा जाता है। लोहार्गल का अर्थ वह स्थान जहाँ लोहा गल जाए । पुराणों में भी इस स्थान का वर्णन है। झुन्झुनू जिले में अरावली पर्वत की शाखाएँ उदयपुरवाटी तहसील से प्रवेश कर खेतड़ी व सिंघाना तक निकलती हैं, जिसकी सबसे ऊँची पर्वत चोटी (1050 मीटर) लोहार्गल में ही है। पांडवों की प्रायश्चित स्थली है लोहार्गल तीर्थ स्थान (Lohargal Teerth Sthan) - क्यों नाम पड़ा इस स्थान का लोहार्गल - महाभारत युद्ध समाप्ति के पश्चात पाण्डव जब आपने भाई बंधुओं और अन्य स्वजनों की हत्या करने के पाप से अत्यंत दुःखी थे, तब भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर वे पाप मुक्ति के लिए विभिन्न तीर्थ स्थलों के दर्शन करने के लिए गए। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार पानी में गल जाए, वहीं तुम्हारा पाप म