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Showing posts with the label राजस्थान के प्रमुख पर्व एवं उत्सव

gangaur festival of rajasthan राजस्थान गणगौर पर्व

The most colorful festival in Rajasthan is Gangaur -  सबसे रंगारंग है राजस्थान का गणगौर का त्यौहार राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक एवं सामाजिक परंपराओं में कई ऐसे त्यौहार प्रचलित हैं, जो विशेष रूप से यहीं मनाए जाते हैं। गणगौर उन्हीं त्यौहारों में से एक है। गणगौर सुख संपत्ति एवं सौभाग्य प्राप्ति का त्यौहार है । कुंआरी कन्याएं अच्छे पति की प्राप्ति के लिए और विवाहित स्त्रियां पति के स्वस्थ और दीर्घायु जीवन की कामना करती हुई सोलह श्रृंगार कर व्रत रखकर यह त्यौहार मनाती हैं। राजस्थान के इन व्रत एवं त्योहारों में गणगौर का विशेष महत्त्व है । राजस्थान में यह त्यौहार आस्था, प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का महाउत्सव है।  गणगौर राजस्थान एवं सीमावर्ती मध्य प्रदेश का एक त्यौहार है जो चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को मनाया जाता है । सामान्यत: गणगौर के त्यौहार मेँ शिव-पार्वती के रूप में ईसरजी और गणगौर की काष्ठ प्रतिमाओं का पूजन किया जाता है । मान्यता है कि शिव जी से विवाह के बाद जब देवी पार्वती (माता गणगौर या  गवरजा) पहली बार मायके आई थीं तब उनके आगमन की खुशी में स्त्रियां यह त्यौहार

क्या होता है पौष बड़ा महोत्सव -

"पौष बड़ा महोत्सव" एक ऐसा उत्सव है जो हिंदू पंचांग के पौष महीने में राजस्थान के विभिन्न शहरों में सर्दियों का स्वागत करने के लिए बडे उत्साह के साथ मनाया जाता है। पौष बड़ा नाम में दो शब्द है- पहला पौष हिंदू पंचांग का माह है और दूसरा बड़ा अर्थात दाल का नमकीन बड़ा या पकोड़ा। जयपुर में पौष बड़ा महोत्सव का आयोजन रियासतकाल से मनाया जा रहा है जो अब कई शहरों में आयोजित किया जाता है। इस त्यौहार को मनाने के लिए लोग पौष मास के किसी भी दिन का चुनाव अपनी आसानी के अनुसार करते हैं तथा अपने आराध्य देव को दाल के बड़े और गर्म हलवे का प्रसाद चढ़ाया जाता है और लोग पन्गत प्रसादी ग्रहण करते हैं।  धार्मिक मान्यता के अनुसार पौष मास दान करने के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। "पौष बडा" में इस्तेमाल होने वाली सामग्री का ग्रहों से संबंध माना जाता है, जैसे तेल का शनि ग्रह से, मिर्च का मंगल ग्रह से, जीरा और धनिया का बुध ग्रह से, गेहूँ का चंद्रमा और पृथ्वी से तथा शुक्र ग्रह से शक्कर का संबंध है। जब इन ग्रहों की ऊर्जा आदमी को मिलती है तो शीतकाल में 'पौष' प्राण संचारित होता है। हम

नाथद्वारा का जन्माष्टमी का अद्भुत उत्सव :

नाथद्वारा का जन्माष्टमी का पर्व :- भगवान श्री कृष्ण का जन्म दिवस ‘जन्माष्टमी’ संपूर्ण भारतवर्ष में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। राजस्थान के राजसमन्द जिले के पुष्टिमार्गीय वैष्णव संप्रदाय के प्रधान पीठ नाथद्वारा में यह त्यौहार अत्यंत विशिष्ट तरीके से मनाए जाने के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। इस उत्सव का आनंद लेने के देशभर से हजारों भक्तगण यहाँ आते है तथा इस उत्सव को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यहाँ श्रीनाथजी के मंदिर में सुबह मंगला से लेकर रात्रि 12 बजे तक दिनभर के सभी आठों दर्शन, प्रभु को 21 तोपों की सलामी, विशाल शोभायात्रा व झांकियां तथा जन्माष्टमी के दूसरे दिवस आयोजित होने वाला नन्द-महोत्सव बहुत ही अद्भुत होते हैं। इस अवसर पर पूरे नगर में मेले-सा माहौल रहता है और भक्तों का भारी हुजूम इस पर्व में शामिल होकर आनंदित होने के लिए उमड़ता है। शाम लगभग 6 बजे एक विशाल और भव्य शोभायात्रा का आयोजन भी किया जाता है जो नगर के रिसाला चौक से शुरू होकर चौपाटी बाजार, देहली बाजार, गोविन्द चौक, बड़ा बाजार मार्ग होते हुए प्रीतमपोली, नयाबाज़ार, चौपाटी होते हुए पुनः रिसाला चौक आती है। इस शोभा

नाथद्वारा का अद्भुत दीपोत्सव, गोवर्धन पूजा और अन्नकूट

पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के प्रमुख तीर्थ स्थल नाथद्वारा में दीपावली का दिन सर्वाधिक आनंद का दिन होता है। भक्त मानते हैं कि प्रभु श्रीनाथजी प्रातः जल्दी उठकर सुगन्धित पदार्थों से अभ्यंग कर , श्रृंगार धारण कर खिड़क (गौशाला) में पधारते हैं , गायों का श्रृंगार करते हैं तथा उनको खूब खेलाते हैं। श्रीजी का दीपावली का सेवाक्रम - दीपावली का महोत्सव होने के कारण श्रीनाथजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की वंदनमाल बाँधी जाती हैं। मंदिर में प्रातः 4.00 बजे शंखनाद होता है तथा प्रातः लगभग 4.45 बजे मंगला के दर्शन खोले जाते हैं। मंगला के दर्शन के उपरांत प्रभु को चन्दन , आंवला एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है। श्रीनाथजी को लाल सलीदार ज़री की सूथन , फूलक शाही श्वेत ज़री की चोली , चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर ज़री की कूल्हे के ऊपर पाँच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ धारण कराई जाती है। भगवान को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) तीन जोड़ी ( माणक , हीरा-माणक व पन्ना) का भारी श्रृंगार किया जाता है जिसमें हीरे , मोती , माणक , पन्न