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क्या होता है बंद्याक या वन्याकड़ो (बन्द्याकड़ों)-

वन्याक या बंद्याक बैठने की रस्म - राजस्थान के जनसामान्य में ये भावना रहती है कि उनके घर में होने वाला विवाह के सभी कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न हो जाए तथा वर-वधू को शुभ आशीर्वाद मिले। इसी कारण विवाहोत्सव में सर्वप्रथम विघ्न विनाशक भगवान विनायक की स्थापना कर पूजा की जाती है। विवाह के अवसर पर लग्न पत्रिका के पश्चात कोई भी शुभ दिन देखकर गाँव या शहर के प्रसिद्ध गणेश जी के मंदिर में जाकर विधिवत उनकी पूजा की जाती है। यहाँ से पाँच कंकड़े घर पर लाते हैं। उन्हें गणेश जी के रूप में एक पाटे पर स्थापित कर दिया जाता है।  इसके अलावा कहीं-कहीं गणेश जी का पाना लाकर उसकी स्थापना की जाती है। पाना गणेश जी का हाथ कलम का चित्र होता है, जिसे चित्रकार द्वारा बनाया जाता हैं। इसके अलावा कुछ परिवार चित्रकार को बुलवाकर घर के एक कमरे की दीवार पर गणेश जी का चित्र भी बनवाते हैं। विनायक स्थापना के इस दिन से सगे-संबंधी और व्यवहार वाले वर या वधू को अपने-अपने घरों पर भोजन करने के लिए आमंत्रित करना आरंभ कर देते हैं, वर या वधू को भोजन कराने की इस रस्म को बन्दोला देना या बिनौरा देना अथवा बिनौरा जीमना कहते

Mandana Folk Art of Rajasthan- राजस्थान की मांडणा लोक कला

राजस्थान की लोक आस्था में मांडनो का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। त्योहारों, उत्सव और मांगलिक कार्यों में मांडणा प्रत्येक घर-आंगन की शोभा होता है। मांडणा कला का भारतीय संस्कृति में सदियों से विशिष्ठ स्थान है। दीपोत्सव के अवसर पर तो यह कला लोकप्रथा का स्वरूप धारण कर लेती है। इस उत्सव पर ग्रामीण अंचल में घरों की लिपाई, पुताई व रंगाई के साथ मांडने बनाना अनिवार्य समझा जाता है। राजस्थान में ग्रामीण अंचल के अलावा शहरी क्षेत्र में भी मांडणा अंकन के जीवंत दर्शन होते है किंतु कतिपय घरों में इनके अंकन का माध्यम बदल जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में मांडना उकेरने में गेरु या हिरमिच एवं खडिया या चूने का प्रयोग किया जाता है। इसके निर्माण में गेरु या हिरमिच का प्रयोग पार्श्व (बैकग्राउंड) के रूप में किया जाता है जबकि इसमें विभिन्न आकृतियों व रेखाओं का अंकन खड़िया अथवा चूने से किया जाता है। शहरी क्षेत्रों में मांडने चित्रण में गेरु व खडिया के स्थान पर ऑयल रंगों का अक्सर उपयोग होने लगा है। नगरों में सामान्यतः लाल ऑयल पेंट की जमीन पर विभिन्न रंगों से आकारों का अंकन किया जाता है। दीपावली पर प्रत्

राजस्थान के रीति-रिवाज

आठवाँ पूजन स्त्री के गर्भवती होने के सात माह पूरे कर लेती है तब इष्ट देव का पूजन किया जाता है और प्रीतिभोज किया जाता है। पनघट पूजन या जलमा पूजन बच्चे के जन्म के कुछ दिनों पश्चात (सवा माह बाद) पनघट पूजन या कुआँ पूजन की रस्म की जाती है इसे जलमा पूजन भी कहते हैं। आख्या बालक के जन्म के आठवें दिन बहने जच्चा को आख्या करती है और एक मांगलिक चिह्न 'साथिया' भेंट करती है। जड़ूला उतारना जब बालक दो या तीन वर्ष का हो जाता है तो उसके बाल उतराए जाते हैं। वस्तुतः मुंडन संस्कार को ही जडूला कहते हैं। सगाई वधू पक्ष की ओर से संबंध तय होने पर सामर्थ्य अनुसार शगुन के रुपये तथा नारियल दिया जाता है। बिनौरा सगे संबंधी व गाँव के अन्य लोग अपने घरों में वर या वधू तथा उसके परिवार को बुला कर भोजन कराते हैं जिसे बिनौरा कहते हैं। तोरण यह जब बारात लेकर कन्या के घर पहुँचता है तो घोड़ी पर बैठे हुए ही घर के दरवाजे पर बँधे हुए तोरण को तलवार से छूता है जिसे तोरण मारना कहते हैं। तोरण एक प्रकार का मांगलिक चिह्न है। खेतपाल पूजन राजस्थान में विवाह का कार्यक्रम आठ दस दिनों पूर्व ही प्रारंभ हो जाते हैं