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ऐसा सुंदर भवई नृत्य जो आपको अचंभित कर देगा

भारतीय लोक कला मंडल के प्रसिद्ध लोक कलाकार लुम्बाराम द्वारा EMRS नेशनल कल्चरल फेस्ट 2019 में राजस्थान के सुंदर भवई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। भवई का परिचय- भवाई जाति का चमत्कारिकता एवं करतब के लिए प्रसिद्ध यह नृत्य उदयपुर संभाग (उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा) में अधिक प्रचलित है। यह मूलतः मटका नृत्य है और मटका इस नृत्य की पहचान है। नाचते हुए सिर पर एक के बाद एक, सात-आठ मटके रख कर थाली के किनारों पर नाचना, गिलासों पर नृत्य करना, नाचते हुए जमीन से मुँह से रुमाल उठाना, नुकीली कीलों पर नाचना आदि करतब इसमें दिखाए जाते हैं। इसमें नृत्य अदायगी, अद्भुत लयबद्ध शारीरिक क्रियाएँ प्रमुख विशेषताएँ हैं।  बोराबोरी, शंकरियाँ, सूरदास, बीकाजी, बाघाजी , ढोला -मारू आदि प्रमुख प्रकार हैं।    प्रमुख कलाकार -  कलजी, कुसुम, द्रोपदी, रूप सिंह शेखावत, पुष्पा व्यास (जोधपुर), सांगी लाल संगडिया (बाड़मेर), तारा शर्मा, दयाराम, स्वरुप पंवार (बाड़मेर), लुम्बाराम आदि।    पुष्पा व्यास (जोधपुर) भवई की वह कलाकार है, जिसने इस नृत्य को राजस्थान के बाहर इसे प्रोत्साहित किया।

पल्ला रे पल्ला पर दादर मोर राजस्थानी गीत अर्थ सहित

और रंग दे रे म्हाने औजू रंग दे  म्हारा सासुजी के दाय कोनी आई रे  नीलगर और रंग दे .... अर्थ- हे नीलगर (रंगने वाले रंगरेेेज) तुम्हारा रंगा हुआ मेरी सासूजी को पसंद (दाय) नहीं आया है, अतः हे नीलगर और रंग दे मेरा यह पुनः (ओजू) रंग दे। अल्ला रे पल्ला पर दादर मोर रंग दे  घूँघट पर बाई सा रो बीरो ये नीलगर और रंग दे। अर्थ- इसके अल्ले पल्ले पर दादुर और मोर पक्षी की चित्रकारी कर दे और घूंघट पर मेरी ननद का भाई (बाईसा रो बीरो) अर्थात मेरे पतिदेव को चित्रित कर दे। इस प्रकार इसे और रंग दे।  और रंग दे रे म्हाने औजू रंग दे  म्हारा सासुजी के दाय कोनी आई रे नीलगर और रंग दे । अर्थ- हे नीलगर, तुम्हारा रंगा हुआ मेरी सासूजी को पसंद नहीं आया है, अतः हे नीलगर और रंग दे मुझे ओजू (पुनः) रंग दे। सुसरो जी रंगाई म्हारे लाल ओढनी  म्हारा सासुजी के दाय कोणी आई रे  नीलगर और रंग दे। अर्थ- ससुर जी ने जो लाल ओढ़नी मंगाई थी वो मेरी सासुजी को पसंद नहीं आई है। अतः नीलगर इसे दुबारा रंग दे। जेठजी रंगाई म्हारे पीलो पोमचो म्हारी जेठानी के दाय कोणी आई रे नीलगर और रंग दे। अर्थ- जेठ जी ने मेरे लिए पीले

Folklore of Rajasthan राजस्थान के लोकगीत-

राजस्थान के लोकगीत- लोकगीत विवरण 1.          मोरिया इस लोकगीत में ऐसी लड़की की व्यथा है , जिसका विवाह संबंध निश्चित हो गया है किन्तु विवाह होने में देरी है। 2.          औल्यू ओल्यू का मतलब 'याद आना' है। दाम्पत्य प्रेम से परिपूर्ण विलापयुक्त लयबद्ध गीत जिसमें पति के लिए भंवरजी , कँवरजी का तथा पत्नी के लिए मरवण व गौरी का प्रयोग किया गया है। 3.          घूमर गणगौर अथवा तीज त्यौहारों के अवसर पर स्त्रियों द्वारा घूमर नृत्य के साथ गाया जाने वाला गीत है , जिसके माध्यम से नायिका अपने प्रियतम से श्रृंगारिक साधनों की मांग करती है। 4.          गोरबंध गोरबंध , ऊंट के गले का आभूषण है। मारवाड़ तथा शेखावटी क्षेत्र में इस आभूषण पर गीत गोरबंध नखरालो गीत गाया जाता है। इस गीत से ऊँट के शृंगार का वर्णन मिलता है। 5.          कुरजां कुरजां साइबेरिया से आने वाला सारस पक्षी है। यह लोकप्रिय गीत में कुरजां पक्षी को संबोधित करते हुए विरहणियों द्वारा अपने प्रि